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-- (८२) वीजक कबीरदास । अथ इक्कीसवीं रमैनी । | चौपाई। वहुतदुखें है दुखकी खानी । तववचिहौजवरामहिजानी १ रामहि जानियुक्ति जोचलई । युक्तिहिते फंदा नाहिं परई २ युक्तिहि युक्ति चलत संसारा । निश्चयकहा न मानुहमारा३ कनक कामिनी घोरप्टोरा । संपत्ति बहुत रहे दिनथोरा ४ थोरेहि संपतिगो वौराई । धरमरायकी खबर न पाई ६ देखित्रासमुखगोकुम्हिलाई । अमृत धोखे गो विष खाई ६ साखी ॥ मैं सिरजों में मारहूं, मैं जारौं मैं खाउँ । जलथलमैहींरमिरह्यों,मोरनिरंजननाउँ ॥ ७॥ वहुतदुखै दुखकीखानी । तबवचिहौजवरामहिजानी ॥१॥ | रामहिजानियुक्तिजोचलई । युक्तिहितेफंदानहिपरई ॥२॥ युक्तिहियुक्तिचलतसंसारा । निश्चयकहानमानुहमारा॥३॥ | यह दुःखकी खानि जो संसारसो बहुतदुःखहै अर्थात् बहुतदुःख देईहै तुम तबहीं यातेबचौगे जब सबकेमालिक रक्षक जे श्रीरामचन्द्र तिनकोजानौगे आनउपाय न बचौगे ॥१॥ काहेते जे श्रीरामचंद्र को जानिकै युक्ति सहित अलैहै तेई वही युक्तिहीते संसारके फंदामें नहीं पहैं सो कबीरजी कहहैं सो युक्ति आगे लिखेंगे॥२॥ यासंसार केवल अपनी अपनी युक्तिहीते चले है कबीरजी कहैंहैं मैं जो निश्चय बात कहौहौं कि, रामनामहीते तेरो उद्धार होयगो याकी युक्ति कोई नहीं माने। अपनेही मनकी युक्ति चहै ॥ ३ ॥ कनककामिनी घोरपटोरा । संपतिवहुत रहेदिनथोरा ॥४॥ थोरेहि संपति गो बौराई । धर्मराजकी खबर न पाई ॥॥ I