बीजक कबीरदास । साखी ॥ संशयसाउजदेह में, संगहिखेलेजुआरि ॥ ऐसाघायलवापुरा, जीवनमारैझारि ॥६॥ जैसे शिकारी बाघको मौरैहै जो बाव घायलभयो तै शिकारीको धरिडरैहै। तैसे संशयसाउज जो व्याघ्ररूप मन सो देहरूपी बनमें बसैहै ताके संग जीव जुआं खेले है जब मनोबासनाछैकी उपायकियो तब वही वाको घायल लैबोहै। सो व्याघ्ररूप जो मन है सो घायलāकै बापुरे ने सबजीव हैं तिनको झार दैके मारहै अर्थात् सबको वही माया धोखा ब्रह्ममें लगायदियो औ जोयह पाठहोय कि ( ऐसा घायल बापुरा सब जीवनमारै झारि) तो यह अर्थहै कि ऐसा घायलकहे घाती जो मन सो बापुरेजीवनकोझाराकैमरे हैं जननमरणदेईहै ॥ ५ ॥ इति अठारहवींरमैनीसमाप्तम् । अथ उन्नीसवीं रमैनी । | चौपाई। अनहदअनुभवकीकरिआशा देख यहविपरीततमाशा॥१॥ यहै तमाशा देखहु भाई । जहहैशून्यतहांचलिजाई ॥२॥ शून्याहवांछा शून्यहि गयऊ। हाथाछोड़ि बेहाथाभयऊ॥३॥ संशय साउज सब संसारा । कालअहेरी साँझसकारा ॥४॥ साखी ॥ सुमिरन करहु सोरामको, काल गहेहै केश ॥ | नाजानौं कब मारि है, क्याघर क्यापरदेश॥५॥ अनहदअनुभवीकरिआशा । देखौयह विपरीततमाशा १ अनहद शब्द सुनतसुनत जौने ब्रह्मको अनुभव होइहै ताको तू बिचारैहै। कि ब्रह्म मैंहीहीं या नहीं जानैहै कि अनहद मेरे शरीरहीकोहै वह ब्रह्म मेरही अनुभवहै यह बड़ो तमाशाहैताही की आशाकरे है यह बड़ी बिपरीत है ॥ १ ॥ - -
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बीजक कबीरदास ।