(७७) रमैनी। अथ अठारहवीरमैनी।। चौपाई। अद्भुत पंथ वरणिनहिं जाई । भुले रामभूलिदुनिआई॥१॥ जो चेतौतौ चेतुरे भाई । नहिंतो जिय जरि मूलै जाई॥२॥ शब्द न मानै कथै विज्ञाना । तातेयम दीन्ह्यो है थाना॥३॥ संशय साउज बसै शरीराते खायल अनबेधल हीरा॥४॥ साखी ॥ संशय साउज देह में, संगहि खेल जुआरि ॥ ऐसा घायल वापुरा, जीवन मारै झारि ॥६॥ अद्भुत पंथ वरणि नहिं जाई।भूलेराम भूलिदुनिआई ॥१॥ जो चेतौ तौ चेतुरे भाई । नहिंतो जियजरिमूलेजाई ॥२॥ अद्भुत पंथ जो ब्रह्म ताको वर्णतकोईने अंतनहींपायो रामने साहब तिनके भूलेकहे बिना जानेते सब दुनिया धोखा ब्रह्म मायामेंभूलिगई १ हे भाइउ चेतौतौ चेतैौ नहीं तैौ मायाब्रह्मकी आगिमें जरिकै मूलतेजाउगे । यह कबीर- जीकहै हैं। नहीं तो यम जीव लैजाइ जो यहपाठहोयतै यह अर्थ है कि चेतीत चेतै नहीं तौ यम लैजायके नरकमें डारिदेईंगे ॥ २ ॥ शब्द न मानैकथै विज्ञाना । तातेयमदीन्ह्योरैथाना॥ ३॥ संशय साउज वसै शरीरा । तेखायलअनबेधलहीरा ॥४॥ बिज्ञानहूको सार जाते सबशब्द निकसे हैं ऐसे जोरामनाम ताको तौ मानै- नहीं है और और मतिमें लगिकै विज्ञान कथै है ताते यमराज जी जैसे कर्मकरैहै ताका तैसो नरक स्वर्गकोथान देय ३ संशयरूपी साउज जो मन सो शरीररूपी बनमें बासिके अनबेधलकहे जाकोयश रामनाम में नहीं है ऐसों जो हीराजीव ताको खायगयो कौनीरीतिते खायो सो आगे कहै हैं ॥ ४ ॥
पृष्ठ:बीजक.djvu/१२८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( ७७ )
रमैनी ।