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रमैनी । ( ७५ ) जसजिवआपुमिलैअसकोई । बहुतधर्मसुखहृदयाहोई॥१॥ जासोंबात रामकीकही । प्रीति न काहूसों निर्वही ॥ २॥ जैसो आपु होइ तैसा जबताकेा मिलै तबहीं धर्मबढे है औ हृदयमें बड़ों सुखहोयहै तामें प्रमाण गोसाईजीको ॥ दोहा । इष्टमिलै अरु मन मिले, मिलै भजनरसरीति ॥ तुलसिदास तासों मिलै, हाठिकै उपजै प्रीति १ सो औरीभांति सुखनहींहोय १ काहे ते कि जासे कहे जौने जीवनसों रामकी बात मैं कहौहौं कि तें रामचन्द्रको है तिनको अपना साहब मानु नाना ईश्वर जो तैंने माने हैं सो येसत्र मायाके जालमें परहैं तोको कहा उबारेंगे सो कबीरजी कहैहैं। कि या मेरी बातपै काहू जीवनकी प्रीति न निबहतभई अर्थात् जो मेरीबात प्रीतिते सुनै साहब को जानै जपने अपने मतमें आरूढलै बादसोकेरैहै बस्तुनहीं ग्रहणकरे है ॥ २ ॥ एकैभाव सकलजगदेखी । बाहेरपरै सोहोय विवेकी ॥३॥ विषयमोहकेफंछोड़ाई । जहां जाय तहँकाटुकसाई॥ ४ ॥ एकैभाव सकल जगदेखी कहे जे एक ब्रह्लभाव जगत्को देखे हैं तेहिते बा• हेर अपनेको दासमानि सब में चिद्रूपको जो जानै है । सोईं बिवेकी होयहैं। सोऐसे विवेकिनके पासतो नहीं जायहै ३ नाना विषयके मोहके फंद छोड़ायकै अर्थात संसारते वैराग्य करिके अधिकारिहूढुकै जहाँजहांजायहैं तहांतहा कसाई जे गुरुवा लोग ते गलाकाट हैं अर्थात् साहबका ज्ञानकाटि धोखा ब्रह्ममें लगाय देयँ हैं । सो याक गलाकाट्यो गलाकाटे फेरिजन्महायतै याते गुरुवालोगनको कसाई कह्यो । ऐसे याहूको जनन मरण होय है । व्यंग्य यह है कि जे जीव साहब को त्याग औरै और में लगै हैं ते पशुहैं उनको ऐसही गलाकाट्यो जायेहै ॥ ४ ॥ कसुई तो शरीरको गलाकाटे हैं और आय कसाई छुरी हाथ । कैसेहु व काटों माथा ॥ ६ ॥ १ स्वार्थी गुरुवालोग जिनको संसारी सुख और क्षणिक मान बडाईके अतिरिक्त सत्यका ज्ञानहीं नहीं है। २ गुरु [लोगोंके नानाप्रकारसे जीवों को ठगने के उपाय ।