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| मैन । ( ७३ ) कहे हरि अप्रकट भये तिनके बिना जाने जगत्के धन्धेमें जीव सब अपनो मन लगायराख्या ॥ २ ॥ गहनी वंधन वांधनसूझा । थाकिपरेतबकछूनबूझा ॥३॥ | गहनी बंधन जो मायासवलित ब्रह्म जौन बांधिकै संसारमें डारि देनवारों ऐसो जो ब्रह्म ताको बांधजीवनको न सूझिपरयो कौन बांध कि जो कोई मोहीमेलगैहै तौ में बांधिकै संसार में डारिदेउँ हैं। या मायासबलिंत ब्रह्मको बांध ना सूझि परयो जो कहो काहेते बांधबध्यो है ते जगत्की उत्पत्ति वहीं ब्रह्मते होय है वा ब्रह्म जगत्को रहि बोई चाहैहै याही ते जो कोई वामें लगे हैं। ताको साहबको ज्ञान भुलायकै संसारहीमें राखैहै सो कबीरजी कहै हैं कि जब वही संसार में थकिपरे तब कछु न बूझत भये अर्थात् अनेक मतनको बिचारैहै पै सिद्धांत न पावतभये साहबको ज्ञान भूलिगये ॥ ३ ॥ भूलिपरे तब अधिक डेराइ । रजनी अंधकूपढ्जाइ ॥ ४ ॥ मायामोह उहाँभरिभूरी । दादुरदामिनिपवनहुपूरी ॥६॥ बरसैतपैअखंडितधारा । रैनिभयावनिकछुनअहोरा ॥ ६॥ सोजब साहब को ज्ञानभूले संसारमेंपरे तबअधिकडर आवत भयो काहेते कि मूलाज्ञानरूप रजनीकी बड़ी अँधियारीहोत भई कछू न सूझिपरयो काहेते कि अहं ब्रह्मास्मिमानिकै लीन हैं वहीं संसार में परयो जहां मायामोह भूरिभरे हैं। तब तो माया कारणरूपारहीहै अब कार्गरूपाभईबहुत मोहादिकहोतभयतामें परे जैसेदादुर बेलैहैं अर्थकछु नहीहै तैसे उनको वेदकोपढ़िबो है अर्थनहीं जानैहैं जो काहूकेकहे कछूज्ञानभयो तबदामिनीकैसी दमकलैजाय हैं कछु हृदय में नहीं ठहराय है औ पवनहु पूरी जो कह्यो सो पवन चढ़ायकै योगकरिये तौ श्रम करैहै कि कोई खेचरी आदिक मुदाकरि अखंडधारा अमृतवर्षाई नागिनी उठाइ समाधिकरैहै औ कोई तपै अखंडित धाराकहे पांचहजार कुंभक करिकै ज्वाला उठाइ तौनेते नागिनीको जगाय प्राणचढ़ायसमाधिकरहै तहौंभयावनिरैनि जोमूला ज्ञानको अँधियारी ताहीमें परयो अर्थात् जबतक ज्योति