यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

रमैनी । (७१) पराई सोताहीको मुक्ति का मानहै सो या एक सिद्धांत ब्रह्माके पुत्र वेदन ते पूछये वेदव्रह्माते पूछयो तबबझै को भ्रम भयो तब आकाशवाणी सुनि के संभ्रमपूर्वक सबको शेष के पास पठयो से शेषनी जौन वेदको तात्पर्य सिद्धांत सबको समुझायो है सो आदिमंगलमें लिखि आयेहैं औमरे बनायेरामायणके अंतहूमें लिख्यौहै सो या हेतुते कबीरजी के हैं कि अगुवा जेब्रह्मा तिनहीको भ्रमभयो है ॥ १ ॥ पियअनतै धनअनतैरहई । चौपरिकामरिमाथगहई॥२॥ पियतः साहबहै औपियके मिलनवारो जोजीवनको ज्ञान सोई धन है सों दोउ अनतही रहै हैं कोई बिरले संत पॉवहैं । चौपरिजो चारों वेद तिनकी कोमरि ऐसी भारी शीशपर धरे अपने अपने मनको अर्थ करैहैं वेदको सिद्धांत नहीं पावै । अथवा चौपार जो चारो खानिके नीव ते कर्मरूप जॉहै कामरि ताको कांधेपैधरेहैं ॥ २ ॥ साखी ॥ फुलवाभार न लै सकै, कहै सखीसरोय ॥ ज्योज्यॉभीजैकामरी, त्यॉत्यों भारीहोय ॥ ३॥ जीवजे ते अल्प हैं कर्मकांडरूप जोफूल ताही को भार नहीं साहसकै अथत् सोई नहीं समुझिपैर ब्रह्मविचार कैसे समुझिपरे सो वेदरूप कामरि कांधेधरे जब ब्रह्मविचार करनलगे निषेध करतकरत तब विचारमें ब्रह्म न आयो तबसखी जे जीव तिनते रोइकै कहतेहैं नेति नेति यतनै नहीं है अबै और क छैहै नहीं समुझिपरै यही रोइबा सो सो गुरुआलोग तिनसे पूछ्यो कि, जोतुमने बतायोक, ब्रह्महै सो हमको समझ नं परी तब उन गुरुवालगन ज्यों ज्यों वेदरूप कामरीभानें कहे बिचारत जाइहैं त्यों त्यों भारीहोतजायहै । सो कामरीमें दोय अर्थ दोय है एक कर्मविचाररूपॅहै एक ब्रह्मविचाररूप। सो दोनोंको तारनाहा पावैहैं ज्यों ज्यों विचारत जाई है त्यों त्यो कठिनई होते जाइहैं। अर्थात् गहिरो अर्थ होतजायसो कैसे समुझिपरै वातो वेदार्थमें विचार करै है। ब्रह्मरूप कामरी सो तो धोखाब्रह्म कुछ बस्तुही नहीं है ।। ३ ।। इति पंद्रहवींरमैनीसमाप्तम् ।।