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(६२) | बीजक कबीरदास । जन्मत मरतरहीही अथवा अहंब्रह्म अहब्रह्म अहंमीश्वरः अहंभागी अहास: अहंबलवान् अहंसुखी इहै भूकैहै तामें प्रमाण ।। (ईश्वरोऽहमहंभोगी सिद्धाऽहंबल. वासुखी) ॥ इत्यादिक स्यार जो बाणी ताते एकौकाज नहींभयो.अर्थात् जौनी बाणीकेदेखाये प्रबिंबदेख्यो अनुभव ब्रह्ममान्यो तौनेकेकाज न भयो जनन मरण न छूटये अथवा हे जीवो ! तुम जे कुकुरहौ ते स्यार शिवा भवानी रुद्राणी अमरमें लिखैहैं से हे जीवो !सोई स्यार रूपज बाणीहै ताको देखिदेखि भूकतेहौ कहे पढ़तेहौ वा स्यार रूपबाणीके धरिबेकोत भूकभूक तुमही मरिगये स्यारते कार्य न भयो अर्थात् स्याररूप जोबाणी सोतुम्हारीधरी न धरिगई वाको तात्पर्य्यर्थको न जानतभये वृतितौनहीं राखौह अपने जानपनीको घमण्हराखौ है तातेमायाते न छूटे ॥ ६ ॥ साखी ॥ मूस विलारीएकसँग, कहु कैसे रहिजाय ॥ यक अचरज देखी संतौ, हस्तीसिखाय ॥७॥ हे नरौ! मूस जे तुमही तिनको बिलारी जो मायाहै सो कैसे न खाय एक संग तोरहौहौ सो कैसे बिनाखाये रहिनाय सो हे संतो एकआश्चर्य और देखो तुम जे जीवहौ तेतौ सिंहहौ तिनको जो हाथी धोखाव्रह्म। सो खायलेयहै । जो मोको तुमजानौ तौ तुम सिंहही बने हौ तुमसब धोखा मिटावन वारेही हाथी खानेवारेहौ । साहब स्वामी है जीवदासहै । सो हमारा सिंहरूपी नाको अति जो है धोको ब्रह्मसो हमारे सिंहरूपी जो ज्ञान ताकौ खाय है यह बडा आश्चर्य है। इति बारहवीं रमैनी समाप्तम् । अथ तेरहवीं रमैनी। गुरुमुख । चौपाई । नहिंपरतीतिजोयाहिसंसाराद्वब्यकचोटकठिनकोमारा ॥१॥ सोतो शेषे जाय लुकाई । काहूके परतीति न आई॥२॥ चले लोक सब मूलगैवाई। यमकी वाढ़िकाटिनहिंजाई॥३॥