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हिंदुस्तानी का कुछ निजी लगाव हिंदी से भी होता। हिंदी तो कल की 'हिंदूई' या पंडिताऊ चीज ठहरी! ठीक है। पर कृपया यह तो देखिए कि भारतीय भाषाओं के चित्रगुप्त सर जार्ज ग्रियर्सन जैसे भाषामनीषी क्या कहते हैं? जरा गौर से सुनिए, उनका कहना है कि—

"Hindi- A form of the Hindostani dialect of western Hindi. Widely spoken throughout Northern India." (Linguistic Survey of India, Vol I. Part I. P. 454)

और उर्दू? उसे भी नोट कर लें—Urdu- A form of the Hindostani Dialect of Western Hindi. It is generally written in the Persian character and is distinguished by the free use of words borrowed from Persian or Arabic." (Linguistic Survey of India, Vol I. Part I. Introductory, 1927 P. 513)

सर जार्ज ग्रियर्सन का दावा सही हो या गलत, उससे हमारा कोई मतलब नहीं। हमें तो 'हमारी ज़बान' तथा 'हिंदुस्तानी लुग़त' के विधाता डाक्टर मौलाना अब्दुल हक तथा उनके हमजोलियों से यह जान लेता है कि जब हिंदुस्तानी बोलचाल की ठेठ भाषा है तब उसकी 'लुग़त' के लिये 'मुस्तनद मुसन्निफों की कैद क्यों? क्या लोकगीतों से हिंदुस्तानी जबान का काम नहीं चल सकता! निवेदन है नहीं, हरगिज नहीं। क्यों? कारण प्रत्यक्ष है। वह वस्तुतः हिंदुस्तानी नहीं 'इम्तयाज़ी' चीज है जो