पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/९५

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विहारीवहार । । पति रति की बतियाँ कही सखी लखी मुसकाय। । कै कै सबै टलाटली अली चली सुखपाय ॥३६॥ | अली चली सुखपाइ जुगलजोरी काँ निरखत । हरि राधा पै प्रान वारि अतिसय हिय हरषत ॥ धन्य धन्य सो कुज राधिका जहाँ विराजति । अँहि । मुखचन्दचकोर सुकवि सँग राजत ब्रजपत्ति ॥ ५५ ॥ .. :...:.. सकुचि सुरति आरभ ही बिछुरी लाज लेजाय । ढरकि ढार दुरि ढिग भई ढीठ ढिठाई आय ॥ ३७॥ ढीठ ढिठाई आय लगी चतुराई छाँटन । जुगल रसिकं क लगी सुरत- रसरासी बॉटन ॥ अन्तरङ्ग हू सुकबि पहुँच नहिँ सकत तहाँ तकु । और कविले की बात कही जो ताहि बरन सकु ॥ ५६ ॥ पुनः । । आय सकै किहुँ भाति लाज हू जिहिँ थल नाहीं । और कौन पुनि जाइ सकत तिहँ कुञ्जन माहीं ॥ को कवि निलज कहाइ बरनि तिहिँ बनवै ब- । ति । सुकवि मदन हू जानत नहिँ वह सकुचि सुरति ॥ ५७॥ पुनः । । ढीठ ढिठाई आय गई उन कवि की रसना । जो बरनत सोउ रहस रहत । कछु अपने वस ना ॥ हठ करि जतनन सुकवि लाज बाँधी जउ बकुची । वर निः सकत नहिँ तऊ पात भसि लेखनि सकुची ॥ ५८ ॥ सब अंग करि राखी सुधर नायक नेह सिखाय । रसद्भुत लात अनन्तु गति पुतरी पातुरराय ॥ ३८ ॥ पुतरी पातुस्राय रँगी स्यासहिँ रँग दोऊ :। तिमि कपोतधुनिकढ़त तासु

  • सँग बाजन सोऊ ॥ क़वरी वरसंत फूल मनहु लखि हावभाव नत्र । या बिंधि
  • हरि के प्रेम सुकवि छवि छाइ रही सव ॥ ५६ ॥ . .....

३ राधाकृष्ण का इतना गहरा संयोग अवर्णनीय समझ तीनों” कुण्डलियां बनाई गई हैं। पत्रा। . **--------- ...... = = = ...