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- विहारविहार । . समरस *समरसकोचवस बिबस न ठिकु ठहराय। फिरि फिरि उझकति फिरि दुति दुर दुरि उझकति जाय ॥३२॥ दुरि दुरि उझकति जाइ झुमावात घेसर नीको । अलकावली हटाइ ल- खत फिरि घदन सखी को ॥ आपु झरोखे झिपी परयो मन पिय के परवस । सुकाव लाज अरु काम तिया अँग व्यापे समरस ॥ ५१ ॥ कुरे चाह स चुटकि कै खरे उड़ हैं मैन । लाज नवाये तरफरत करत बँद सी नैन । ३३ ।।. करत बँद सी नैन दोऊ मनमथ के घेरे । लाजसईस न रोकि सकत
- ऐसे मुँह जोरे । पुलकवुन्द के फेन गिरावत भरि उमाह स । उछरन स-
- कत न तऊ सुकवि वल करे चाह स ॥ ५२ ॥
छुटै न लाज न लालचौ प्यौ लखि नैहरगेह ।। सटपटात लोचन खरे भरे सोचसनेह ॥ ३४॥ भरे सोचसनेह दोऊ लोचन रँगभने । लगालगी जमि करत दुरे हैं | पूँघट झीने ॥ करि हारी बहु जतन तऊ रससमय जुटै ना : समुझाये हु पै सुकृवि लखहु तिय लगनि छुटै ना ॥ ५३॥ प्रियविठुरन को दुसह दुख हरष जात * प्यौसार । दुर्योधन लौ देखियत तजत प्रान इहिँ चार ॥ ३५ ॥ तजत प्रान इहिं बार दोऊ लोचन जलभीनी । ऊँचे लेत उसास कैंपत
- तन नारि नवीनी ॥ + अकचक भूली सी चंचन कछु नाहिँ फुरन को । सु-
- कवि हरप हैं तऊ दुसह दुख पियविठुरन को ।। ५४ ॥
- • समर मर । ' मार नहर । $ टुग्यौंधन को नाप धा किं ५ भोक माय होके मरण होगा ।
- . ** भूलना, ले पान है । * अक्की की भूल गई" प्रायः बोला जाता है।
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