पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/८८

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विहारविहार । " कहत न देवर की कुवत* कुलतिय कलह डेरात । पंजरगत मंजार ढिग सुक लीं सूखात जात ॥ १५॥ । सुक ल सुखति जाति इसार हु साँ न बुझावति । सासु ननद पिय नि- कट वैठि किहुँ समय वितावति ॥ सुमरि घात अँसुवान वहावति दोऊ नय- नन । पूछि सखी सव थक कलह-डर तोऊ कहत न ॥ २६ ॥ पारयो सोर सुहाग को इन विन ही पिय-नेह । उनदह अँखिया के कै कै अलसॉहीं देह ॥१६॥ . के अलसाही देह पछि कछु अञ्जन दृग को। कच कलु कछु विथुराइ मि- । टाइ महावर पग को । कंचुकि हू दरकाई कपोलनि पीक सँवास्यो । पगी। । सुकविसँग तिया सार यह घर घर पारयो ॥ २७ ॥ पुनः ।। ३ कै अलसह देह ऍठि अगिरावति प्यारी। आनन पाँछति वार वार - । रसी निहारी ॥ तोरि तोरि पुनि हार गुहत स्याम हिँ मन धारयो । सुकवि

  • सोर इमि तिया पियासँग रति को पारयो ॥ २८ ॥ ।

| कै अलसाँहीं देह फिरे विनु और करै का। पिय जो चाहत नाहिँ निजहु पुनि नाहिं ढेरे का । झूठेहु लगें कलङ्ग स्यामसँग जनम सुधारयो । सुकवि याहि सों वाल सोर अति जतनन पारयो ॥ २६ ॥ छुटी न सिसुता की झलक झल्क्यो जोवन अङ्ग । दीपति देह दुहुन मिलि दिपति ताफता :: रङ्ग ॥१७॥ रङ्गः चट्या इक अजय करत वदरङ्ग सौतिमुख । हँसत झिपत कनखात । ० कुयर : रोटीवात । '• * * { ऐसा ही दोहा २४० में है)।

नाम : धृपद : दो मेन का । फारमी धातु " ताफ़तन्" । ।