पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/८७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारीबिहार। | बाल कहा लाली भई लोयन कोयन मॉह । | लाल तिहारे दृगन की परी हगन मैं छाँह ।।१२॥ . छाँह परी यह अरुन हहा तेरे नैनन की । क्यों बररावत वहकि हनत चरछी बैनन की ॥ तेरे पायन परत पिया सुकवि हु के पालक। तू दिखरावत भौंह हाय जनु व्यालीबालक ॥ २२ ॥', | पुनः । ।

  • छाँह परी तो चली कहा उठिकै अनखानी १ । नहिँ अनखानी चरन प-

खारन ल्यावत पानी ॥ बोलत धीमे बोल कहा मो हिय के सालक ? । कछु न प्यारे सुकवि पौरि के सुनिहुँ बालक ॥ २३ ॥

दुरै न निघरघट दिये यह रावरी कुचाल । विष सी लागति है बुरी हँसी खिसी की लाल ॥१३॥ हँसी खिसी की लाल हँसत सतरावत भाँहूँ। प्रगट भयो सव रहस खात . । तउ झूठी सहूँ ॥ कबहुँ निलज हू बकत कबहुँ कोउ कहानि फुरै ना। नखरे

  • करहु करोर सुकवि तउ बात दुरै ना ॥ २४ ॥

सेद सलिल रोमांच कुस गहि दुलहिनि अरु नाथ । दियो हियो सँग नाथ के हाथ लिये ही हाथ ॥ १४ ॥ हाथ लिये ही हाथ दियो हिय दोऊ परस्पर । मदनमहीपतिप्रेममुहर करवाई तोपर ॥: हयदान को यज्ञ कियो जानत को भेदा । लाज दृच्छिना देइ सुकवि न्हायें दोउ सदा ॥ २५ ॥ ; , .,,. ...

  • ( सखी की उक्ति ) लाल तिहार ( हैं) तेरे दृगन की ( उनके ) दृगन में क्वाह परी ॥
  • नायक नायिका की उक्ति प्रत्युक्तिं । ६ कहीं कहीं स्वंर भेद करके कुण्डलना मिलाई गई है।