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| बिहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।

  • ग्रेवरसन् साहव डविन के वीः ए० हैं, कलकत्ता यूनिवर्सिटी के हो तो हैं, भारत नियमनप्रणाली के

का सहयोगी हैं ( Companion of the Most Iminent Order of the Indian Empire ) बङ्गालू एशिया- टिक् मोसायटी के मेम्बर है, अमेरिका की ओरियण्टल रायल् एशियाटिक और जर्मन ओरियण्टल सोसाइटी के मेम्बर हैं। ग्रयर्सन साइव में एक अपूर्व गुण यह है कि इनसे जो ही भारतीय पुरुष मिलता है वही प्रसन्न से हो जाता है । प्रायः उच्च पद वालों में अपने उच्चपद की ठसक ऐसी हो जाती है कि कोई कैसाही में प्रतिष्ठित विद्दान् उनसे मिलना चाहें तो उससे भरसक मिलते नहीं और मिले तो अपने पद की ठसक भी लगाये रहते हैं । यह बात इनमें नहीं है। इनसे मिलने पर यही विदित होता है कि जैसे किसी

  • परम मित्र से भेट भई हो ॥ हम लोगों से इनसे चिरपरिचय है और इनका स्नेह देख के आश्चर्य होता

है । इनका भविष्यत् जीवन परमात्मा और भो उन्नत करें । (२८) विहारी बिहार-यह ग्रन्थ सव रसिकों के संम्मुख उपस्थित है और मेरा चरित ही क्या है।

  • परन्तु अनेक विद्वान सत्पुरुषों के अनुरोध से मैंने कुछ अपना चरखा इस ग्रन्थ के अन्त में लिख दिया है ।

( इति विहारीव्याख्याकारचरितावली समाप्ती । )