पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५४

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विहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरुपण । -- - -- - - - - - - विहारीतियकृत दोहा।। ‘नहिँ परराग नहिं मधुर मधु नहि विकास एहिँ काल। अली कलौ हो सों बँध्यो आगे कवन हवाल'। १ ।। वाचत नृप दोहा विहँसि रानो रूप निहारि । उठि आये कढ़ि हार दिज दई असीस बिचारि ॥ १२ ॥ किये प्रनाम नृप कहें कुशन सुकवि कही भई आज । रीझि कह्यो दोहा कियो तुम कहें यह सेहराज ।।। से है मोहर भरि अञ्जुली नृप यह यस दीन । प्रति दोहा दैहीं मोहर करु इमि और प्रवोन ॥ १४ ॥

  • लै प्रायस नृप की चल्यो आशिष है हिजराज । यो निज घर मोद सों” तिय सों कह्यो सुकाज ॥१५॥

दोहा चौदह सौ किये तेहिं तिय परम प्रवीन । लै आये डिजराज पें है आसिप तेहिं दीन ॥ १६ ॥

  • बाचि मुदित नृप मोहरें चौदह सौ तेहिं दोन । तिनु मै राखे सात सौ चुनि सतसैया कौन ॥ १७ ॥

में बहुत लिखाई पुस्तकें दई प्रवीनन काज। एक विहारी कीं दई गैंव सहित महराज ॥ १८ ॥

  • अमन्ति गाव अाए सुधर मुदित बिहारीलाल । दै सोहरै सुकथा कही आनन्दित भइ बाल ॥ १८ ॥

में पुस्तक ले तिय कहिय पिय छत्रसाल पई जाउ । है वैदेल कृपसकवि सँग रहत बहुत कविराउ ॥२०॥ तहँ प्रसन्नता होइ ती वोध होइ पिय मोर । तौ ठहरै सब जगत मै यह सतसई सु ठोर ॥ २१ ॥ नई विहारी सतसई छत्रसाल पहँ जाए । करि जाहिर कह सुड यह की कृपा वढाइ ॥ २३ ॥ छत्रसाल नृप ताहि ले सँग सव सुकवि विसाल । माननाथ पहं जाइ कै दई सतसई हाल ॥ ३३ ॥ प्राननाय निरगुन भगत वाह प्रसन्नता होन । जगनापित रति फागु सी वीड़ाध्यष्क कौन ॥ ३ लई विहारोसतसई सो मुनि भये उदास । विदा न मागी भूप सों आये अपने बास । सकम्त कधी तिय सों कही मुनि प्रबोध तेहिं कीन । जाहु वान्त यह फेरि लै उनहीं कह्यो प्रवीन ॥२६॥ | कहियो नृय छतसात सौं ये हैं जग पितु मात । जुगलकिसोर यहां लसें पन्ना मै अरदात ॥ २० ॥ माननाथकृत काव्य अर यह सतसैया लेहु । आगे युगलकिशोर के विनती करि धरि देहु ॥ २८ ॥ निसि न रहे कोऊ लखौ प्रात खोलि पट दोइ । जा पे दसख्त होइ तिन को नीकी सोइ ॥ २८ ॥ ३ ले तिय को उपदेस सोइ फिरे बिहारीलाल । नृप स कहि सोई कियो धरनीसीख दिलास ॥ ३० ॥ में सतया ही पै भये दसखत प्रिया विहार 1 मानाय प्रिय किय लखत सूप सहित कवियार ॥ ३१ ॥ नुकवि बिहारिहिं कहि अवनि ने अति कियो वखाने । ये सव निज २ धनै पाइ उचित सुगमान॥३९॥ । यिम बिहारी मुदित प्रति नृप स भये विदा न । अाये घर कहि सव का तिये वो किया बछान ॥३३॥

  • बहुत खायो ना सिग्यो घर नै कवि यह जानि । प्रति प्रसुत्र छत्रसाल भो अति सन्तोषी मानि ॥३४॥
  • सम्पति अति भूपन सुपट व पान की करीन्ट्र। पांच गांड की तिखि दियो दानपम नृप इन्द्र ॥ ३५ ॥
  • सात पत्र लिखो मुझवि बिहारीलाल। यह लै धावी * कृपा सो ६ परम दयालु ॥ ३६ ॥

भय लोग में 3 यसै वि बिहारी वैन । यि पत्री करु या कशी पटवी हमें नरेश , ३० । । इदि विकारी पनि दिय निज तिय को । वैचि न दिय कई नृपति को दोहा लियो बनाइ॥१८॥ ॥