पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/४६

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| बिहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।।

  • का प्रसाद लेते हैं । ल न जो लाल के पिता का नाम चैनसुख जो था । ये बड़े दरिद्र ब्राह्मण थे । कुछ है

पौरोहित्य करते थे । विहान् गुणी का जीविका से दुःखित होना भी एक. नियत बात है सो ये भी जीविकार्थ भ्रमण करते से • १८४३ में बङ्गदेश सुर्शिदाबाद में आये, यहां कपासखी के शिष्य गोस्वामी गोपालदास रहते थे उनसे कवि जलूलाल का प्रायः सत्सङ्ग होता था उनो के द्वारा नवाब मुबारकुद्दौला । से मुलाकात हुई। यहां गोस्वामी जी और नवाब साहब के यहां से इनका सत्कार होता था इस कारण

  • वे सात वर्ष यहां रह गये ॥ गोस्वामो गोपाल दास के वैकुण्ठवास होने पर और उनके भाई गोस्वामी

रामरङ्गकौशल्यादास जी के वईमान जाने पर लहूलाल उदास हो गये नवाब से विदा हो कलकत्त । आये और बावनकवी रानी भवानी ( इनका चरित राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने अपने गुटके में भली भांति लिखा है ) के पुत्र राजा रामकृष्ण से परिचय कर उनके आशय से कुछ दिन कलकत्त में रहे । जव उनके राज्य का नौन प्रवन्ध हुशा उन ने अपना राज्य पाया तब लल्ललान भी उनके साथ ही नाटोर गये ॥ कई एक वर्षों के अनन्तर उनके राज्य में ऐसा उपद्रव हुआ कि वे कैद कर मुर्शिदा. वाद भेज दिये गये । तब लह लाल पुनः निर्जीविक हो कलकत्त अाये ३ । कलकत्ते के वा लोगों ने में ऊपर ऊपर तो बहुत अादर दिखलाया पर कुछ सहायता न दी । जैसा कि लल्ल लाल ने स्वयं लिखा है कि उन्हीं के शोध शिष्टाचार में जो कु कु वहां से लाया था बैठ कर बवाया” । इस समय नन्न नान्न । न को कई वर्ष तक जीविका का कष्ट बना रहा, फिर जीविकार्य दक्षिण देश जगन्नाथपुरी तक गये । में जगदीश्वर के दर्शन किये । देवात् यहां इस समय नागपुर के राजा मनियां बाबू अाये थे उनसे लल्ल लाल से भेट हुई. वे इनके गुग से प्रसन्न हो नागपुर ले जाते थे पर किसी कारण से ये ने गये फिर कलकत्त में लौट आये । यहां पादरी दुरन साहब से परिचय हुअा । फिर दीवान काशो नाघ ( इनके पोते बाबू । दामोदरदाम बड़े बाजार केतकत्त में अभी तक हैं ) के छोटे पुत्र के द्वारा श्री डाकृर रसन्ने साहब के द्वारा डाकर गिन्न किरिस्त साहब से भेट हुई। उनने इनको हिन्दी गद्य में अन्य बनाने का साहाय्य दिया और मज़हर अन्तो खां विला, श्री सिरज़ा काजमअलो जवां दो सहायक लेवुक दिये ॥ तत्र - न्छन्तान ने एक वर्ष में ( सं० १८५७ सन् १८० X में ; ये चार अन्य लिग्वे ॥ १ सिंहासन बत्तीसी ( सु । दरदास होत ब्रजभापयिन्य का अनुवाद ) २ वेताल पचीसी ( व अन्य शिवदासकृत मंस्कृत पुस्तक * में सूरत मिथ ने ब्रजभाषा में किया था और इनमें ब्रजभाषा से हिन्दी में किया । इस ग्रन्थ का अन्

  • दाद भोलानाथ र शम्भुनाथे का किया भी था ) । शकुन्तला नाटक । ( संस्कृत मे भापानुयाद ) ४
  • माधोनन ( माधवानन में स्क्रत पुस्तक सं० १५८२ को न्नि ग्वो वान एशियाटिक मोसाइटों में अभी ।

६ चित्पुर की मक में टिके घे । ( सुरति मित्र के प्रकरण में इमको मृचनिका है ) में ’ि यत् । ८५५ में नाला गुनादराय और वोधरमित्र ने इनमे मुरतिमित्र का अमरचन्द्रिका ग्रन्थ

  • वायू उसनम के यि निरउयायो ।