पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/४४

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विहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण । देखे अनवरचन्द्रिका पोथी जो चितु लाइ ।। ता नरक कवि रीति मैं मोहतिमिर मिट जाइ ॥ १३ ॥ (७)साहित्यचन्द्रिका-इस ग्रन्थ के रचयिता करणभट्ट भाट थे वे पन्ना के राजा हृदयशाहि के सभा

  • में रहते थे और ये सन् १०३७ में विद्यमान छ ।

(८) रघुनाथकृत टीका-रघुनाथ वन्दौजन संवत् १८०२ में काशी में विद्यमान थे। मुकुन्दलालकबि भी इनके गुरु भाई थे । काशिराज महाराज वरिवण्डसिंह के ये सभर कवि थे। काशी के समीप पचकोसी के भीतर चोर गांव के रहने वाले थे । इनने इतने ग्रन्य बनाये ।। | १रसिकमोहन, २ जगमोहन, ३ इश्कमहोत्सव, ४काध्यकलाधर (सं० १८०३ में रचित) ५ सत्सईटीका। इनी के पुत्र गोकुलनाथ कवि थे जिनने काशिराज श्रीउदितनारायण सिंह की आज्ञा में महाभारत

  • अनुवाद महाभारतदर्पण के अनेक अंशो की रचना की थी ( यह ग्रन्थ हरिवंशदर्पण सहित, कलकत्त*

में में सन् १८२८ में छापा गया था ) इस ग्रन्थ की रचना मैं गोकुलनाथ के पुत्र गोपीनाथ और गोपीनाथ समवयस्क तथा नाम मात्र के शिष्य मणिदेव और मणिदेव के वाल्यकाल के मित्र पण्डित दुर्गादत्त ( दत्तकवि मेरे पिता इनका जीवन चरित्र वाचू चण्डीप्रसादसिंह खट्स विलास यन्त्रालय में बांकीपुर में छाप चुके हैं ) भी थे । 4 गोकुन्तनाथ ने महाराज चेतसिंह के वर्णन में ‘चतचन्द्रिका” नामक अपूर्व ग्रन्थ बनाया था, जो भारतजीवन प्रेस बनारस में छप गया है । और उनका दूसरा ग्रन्थ 'गोविन्द सुखदविहार' नामक है ॥ (८) रसचन्द्रिका-इस अपूर्व टीका के रचयिता नवाव ईसवी खां हैं। नरवरगढ़ के राजावसिंह ने चाहा कि संक्षिप्तार्थ तथा अलङ्कारादिनिर्णयविशिष्ट एक टोका बने तो उनके लिये नवाव ईसवी खां ने यह ग्रन्थ बनाया है। सव से विलक्षण बात इसमें यह है कि दोहे सर्व प्रकारादि क्रम से रखे हैं। पद्धता दोहा “अपने अपने मत लगे” और अन्त का “हा हा बदन उधारि दृग” है । यह ग्रन्य सं० १८०० में समाप्त हुआ। मैंने पास जो ग्रन्थ है सो नरवरगढ़ के निवासी नन्दलाल नागर के बेटे शहरलाल का सं• १८२९ अगहन वदी १ का लिखा हैं । इस ग्रन्थ के अन्त में थे दोहे हैं,-- किय प्रसङ्ग नरवर नृपात, छत्रसिंह सुवभान । पढ़त बिहारी सतसया, सब जग करत प्रमान ।। कविनि किये टीका प्रगट, अर्थ न काहू कीन । अपनी कविता के लये, और कठिन करि दीन । कछू रहे सन्देह नाहिं, ऐसी टीका होय ।। वॉचि वचन को पद अरथ समझि लेइ सव कोइ । F FFFFFFFFFFFFFFFFF