पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/४२

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११ । बिहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण । “दोऊ अमीरुल उम्मरी वली दोऊ तहां भरे ? ।। हातिम दोऊ रुस्तम दोऊ कायम दोङ रन करकरे । समसेर सरकि सिरोह की सावंत दोऊ ए लरे । ( ? ) घन घाइ खाइ अँगाइ अंगनि अटल है दोऊ अरे ॥” (५) प्रबन्धघटना-इस व्याख्या के रचयिता राजा गोपाल शरण सन् १७०• में विद्यमान थे। (६) अनवरचन्द्रिका---यह ग्रन्थ नवाव अनवर खां की सभा के कॅवलनयन आदि कवियों ने नवाब

  • के लिये बनाया था। यह टीका आकार में बहुतही छोटी है परन्तु सरल रीति से अर्थ तथा नायिका

अन्तारादि का निरूपण इसमें भली भांति किया गया है। इस ग्रन्थ में कितने हीं दोहे दो दो बेर लिखे में गये हैं और टीका भी दोहरा के की गई है। इसके प्रत्येक प्रकरण में एकादि अंको के भी अलग २ क्रम हैं । यह ग्रन्थ संवत् १०७१ में बनाया गया था। इस ग्रन्थ के आरम्भ में अनवर खा के विषय में

  • यह लेख है ।।

“भनि सय फुल्लहसाह साहि सरफुद्दी जानो। सालह साहि सुजान साह असगर पहिचानो ॥ अनवर साहि समथ्थ मुंनवर साहि पथ्थ सम । हासिम साहि प्रचंड साहि कासिम सु अनुप्पम ॥ कहि किसवरसाहि विलंद वलकै- सर साह सुजान चित । पुनि मालिक अजदर साहि हुव कुलमंडन जस किय अमित ।। १ ।। अमित तपोवर वलित हुव जाहिर सब जगजानि । गरदेजी इहिं ख्याति जुत यूसफ साहि वखानि ॥ यूसफ साहि चखान सकल गुनगान ज्यों जानें। विदित विलाइति सील समुद त्यों ही पहिचानें ॥ २ ॥ पहिचाने वहु दिननि कवरि ते करनि करेउनित । लसत थाने मुलतान

  • भानसम सोहइ जु अमित ॥ अमित सीलमये अवुवकर सुवउमर लाहि हुवे ।

पुनि अबदुल्लहसाहि साहि काजीखाँ तिनि सुव ॥ ३ ॥

  • पुनि लुतफुल्लहसाहि सोहि अब्दुल्व हावगनि । साहि फरीद सुजानि सैद

३ ख सुभट सिरोमनि ॥ पुनि सैदमुवारकसँ प्रवल तनय सैद साहल अवनि। पुनि सैद मुस्तफा जसजलधि सुत ससि अनवरखाँहि भनि ।। ४ ।। TrrrrrrrrrrrrrFFFFFFF