पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७१

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श्रीकविव विहारी सुसौल के दोहन में जै अहैं सतसैयां ॥ अम्बिकादत्त किये सुगमै रचि कुण्डलिया तिन्हं मैं सुखदैया । मो मन होत अनन्द महा लग्वि देते उन्हें सत कोटि बधैया ॥ ३ ॥ |. .. , . . कवितं । ... " श्रीकवि विहारी जू के जैसे हैं रसीले दोहे तैसेही चुटील यह कौनं नाहिँ जाने है । केत भये टीके गद्य पद्य माहिँ नीके याकै, ताङ्ग पै न काहू मन टप्तताई नै है ॥ * नितही नवीन यापैं सजे हैं वौन साज आज यह ग्रन्थ अति अन्तमोद सानै है ।। सुकवि सुसौल व्यास अम्बादत्त जाहि रचे पुनि पुनि देखें जी न देखे बिना मानै है ॥४॥ एक तो रसीले चटकीले मजेदार दोहे तापै और नोन मिर्च लागे बढ़ स्वाद हैं । कहँ लौं प्रसंसा करें व्यास अम्बादत्त जू की पुनि पुनि लाख लाख देत धन्यवाद हैं। * वे जे बहुतेरी बात श्रीक वि विहारी जू के जीवनचरित्र माहिँ कारन बिबाद हैं । खोज ढूंढि तिनको निरनय कौनो या में देखि सों सुसील होत अति अहलाद है ॥५॥ * काहू काहू दोहे परः पाच पॅच सात सात कीनो कण्डलिया भली सर से सुहानी हैं। तुं मैंति भंाति भावन रुचावन रचनि ताकौ सौनही सवाद जानै जाति ना बखानी हैं। । सुकवि सुसौल कविबर व्यास अम्बादत्त मधुर महान रची सुधारस सानी हैं । आपही सो रसिक सुजान देखि जान जैहैं अँखि आगे वस्तु काह कहन कहानी हैं । यद्यपि सतसैया पै बहु कवि विरची हैं” कुंडलिनँ । . पूरन नलित हाव भावन सों खिलतौं लखिं मन कलियँ ॥ .. मैं काहू के सिगरे पूरे काहुक रहे अधूरे । हैं सवही के कथित काय अति सुन्दर रोचक कारे । । मै ज पूरे अझै सोऊ सव अावत देखन नाहीं । कारन मुद्रित भये नाहिँ हैं फुटकर कछुक सुनाहीं ॥ अब यह पूरन सकल भाति सों मुद्रित अँखिनि अागे । । रोम रोम पुलकत है लखि कै अति ही उर अनुराग ॥ यह सौभाग्य लिख्यैा विधिना जनु सुकविहि कवि के माथे । = = A++++++=====