पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३०

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बिहारी के वंश का विवाद ।।

  • : इन दिनों बिहारी के वंशसम्वन्धी तीन पक्ष उपस्थित हैं।
  • एक पक्ष बिहारो का ओड़छा वाले कविप्रियाकार केशव का पुत्र होना, दूसरा राय अर्थात् भाट

होना और तीसरा चौवे होना ॥ प्रथम पक्ष की पुष्टि में काशीवासो वाबू राधालणदास ने “कबिबर

  • विहारौलाल” नामक अपूर्व पुस्तिका लिखो है और वह काशी नागरोप्रचारिणो सभा द्वारा प्रकाशित
  • हुई हैं। ऐसे २ ग्रन्थ लिखे और प्रकाशित किये जाय तो अवश्य ही कुछ काल में पुरावृत्त का ठोक

में परिचय होने लगे ।। सतसई में कहीं कहीं बुन्देलखण्डो लपेट को उक्ति का अाना तवा बिहारों का अपने पूज्य कोटि

  • में किसी कैशव को मानना ही इस ग्रन्थं के चित्रों को भित्ति है।

मेरी समझ में यदि विहारो, अरबो फारसो दो एक शब्द आने से, अरव और फारस के निवासी में नहीं हो सकते, तो मारवाड़ो अादि शब्दों के साथ दो चार बुन्देलखण्डो शब्द आने से बुन्देलखण्डो भो नहीं हो सकते । तथा केशव का नाम.ने हो से यह नहीं माना जा सकता कि वे पिता हो थे, और पिता भी थे तो ये ही केशव थे । और कई एक और भो किष्ट कल्पना करना पड़तो हैं जैसे केशव ने सं० १६२४ में कविप्रिया पूरी की है। यह एसो वहुज्ञता र प्रौढ़ि से भरा ग्रन्थ है कि सम्भव नहीं कि केशव ने अल्पवय में बनाया हो । क्योंकि संस्कृत के अनेक साहित्य ग्रन्थ पढ़ने के अनन्तर ( उस समय भाषा साहित्य सुबिस्तृत न था ) बहुत सौ कविता वन कृताभ्यास होने के अनन्तर ऐसे ग्रन्य को

  • ऋष्टि का सामर्थ्य होता है । यदि बहुत ही कम मानें तो भी २५ के वय में आरम्भ कर कदाचित् ३०

के वय में केशव ने यह ग्रन्य समाप्त किया हो ॥ इस हिसाब केशव का जन्म संवत् लग ढग १५८४

  • होता है। कैशव ने रसिकप्रिया सं. १६४८ में पूरी को इस समय ये ५४ वर्ष के थे । रामचन्ट्रिका सं•
  • १६५८ में वन इम समय इनका ६४ वर्ष वय हुआ और स• १६६७ में ये ७३ वर्ष के हुए।

में इनको र श्रीड़ा के राजा इन्द्रजित प्रकृति को क्या जाने क्या मदोन्मत्तता माथे चढ़ी थी कि में एक बेर सब इक हुए और विचार किया कि हमलोगों को सहस्रों वर्ष साथ हो इमका उपाय सोचा जाय । अन्त में यह सिद्धान्त हुआ कि यदि हमलोग सब भूत हो जाय तो सहस्रों वर्ष साथ रह सकता यद्यपि देय होने से भी यही वात पाई जाती है। परन्तु देव होना कठिन है भूत होना ही सहज है । सुना है कि केशव दाम ही नै इमू भृतयज्ञ का भार उठाया और भृष्ट पटायें से बड़ी भारी यज्ञ किया। इसमें राजा इन्द्रजित, उनकी समस्त सभा और केशव तथा राजा को कृपापात्र प्रवनराय वेश्या में उपस्थित थी । समस्त मण्डली के चित्र में यही उत्साह आढ़ था कि हम लोग एक ऐसा काम कर रहे

  • * जिस के सिद्ध होने से कैय के कथनानुसार स सहस्र वर्ष तक साथ रहेंगे । यच्चान्त में सव एक

दान में शिक्षालिप्त भूमि में बैठे, गोपड़ियों की माला पहनो, सयमांम से चर्चित हुए और श्मशान