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बिहारी बिहार ।

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  • कौन भाँति रहि है बिरद अब देखवी मुरारि ।

बीधे मोसौ आय कै गीधे गधि हिँ तारि ॥ ६८८ ॥ः । गीधे गीध हिँ तारि आइ मोसों अब बीधे । पसु पांछिन से औगुन नहिं । मेरे हैं सीधे । मैं नटखट हूँ महा करत नहिँ विनती एकौ । सुकबि लखत । । हाँ लाज रखत किमि बिरद बड़ कौ ॥ ८०७ ॥ .] ६०७ ॥ बन्धु भये को दीन के को तारयो रघुराय । | तूठे तूठे फिरत हो झूठे बिरद कहाय ॥ ६९९ ॥ ' झूठे,बिरद कहाय फिरत हो तुठे तूठे । साँची कहि हाँ बात होइ हो तो पुनि रूठे ॥ करत गरब हो कहा गीध गज तारि दिये को । सुकवि तरे हैं। मासे पापी बन्धु भये को ॥ ८०८ ॥ थिोरे ई गुनरीझ तें बिसराई वह वांनि ।। तुम हूँ कान्ह मनो भये आज काल के दानि ॥ ६९० ॥ आज काल के दानि दानमय रीझ पचावें । पचि न सके तो वाह वाह । कहि के मुँह बावें ॥ जो देन ही परै देत तव सरे पिछोरे + । सुकबि कहा तुम हूँ भये ऐसे जिय के थारे ॥ ८०६ ॥ | कब को ट्रेरत दीन रट होत न स्याम सहाय ।। तुम हूँ लागी जगतगुरु जयनायक जगवाया ॥ ६९१ ॥ | जगनायक जगवाय कहा तुम हू कहं लागी । आरत रव के सुनत सुनत हू दया न पागी ॥ कहाँ सुनत गज टेर चले हरि रुके न छन तब कहाँ

  • सुकवि रह्यो रोई तऊ दृग दैहो ध कब ॥ ८१० ।।
  • टिप्पणौ दो ३३१ और ६२८ पर देग्विथे । बौधे = अटके । गौध = अभिमान से फूले । जयसाह

पर आक्षेप तो नहीं है ! ! + पिछोर = दोहर “न बचौ बछिया छिया न पिछोरी बांय = बायु ॥