पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२८

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8 543344444444 बिहारीचरित्र । इस समय यहां जोधपुर के महाराज श्रीजसवन्तसिंह वहादुर भी आये थेः । ( जसवन्तसिंह जी ने । सं• १६८५ से सं• १९३६ तक राज्य किया था ) महाराज ने दिनों से इनकी प्रशंसा सुनी थी और विः । हारी ने भाषाभूषणकार जसवन्ससिंह की चिरकाल से कीर्ति सुनी थी। दोनों को परस्पर मिलने की है। उत्कण्ठा थी। यहां भेट होने से दोनों को बड़ा आनन्द हुआ । महाराज ने कहा "धारी कविता मैं । सुलो लाग गयो।” ( मारवाड़ी भाषा में इसका तात्पर्यय है कि तुमारी कविता में कीड़े पड़ गये, घुन लग गये, जीव पड़ गये इत्यादि ) 4 विहारी कुछ न समझे घर चले आये। बिहारी की बेटी बड़ी बुदि- मतौ धौ । उसने उदास पिता को देख विचार पूर्वक कहा कि “इसका यह तात्पर्य विदित होता है कि पापकी कविता सजीव है। दूसरे दिन बिहारी ने यह अर्थ महाराज को सुनाया तो ये प्रसन्न हुए और कहा कि मैंने इसी तात्पर्य से कहा था ? सुना है कि बिहारी के पुत्र अप्य कबि थे ( जिनका चरित मागे व्याख्याकारों में मिलेगा )। Sateni on Monday Chait badi sangrat 1719, which ( in Jeypur ) corresponds to the 24 •Januar: 1662 3. D. Unfortunately, however, the verse tnust be a subsequent forgery, for that date fell on : 'Thursday, not on a fondns." वे कहते हैं कि चैत छम छठ को ( उनके लेख में छठ कुट गई है सो छपने की अशुदि आन पड़ती है ) सन् १९६२ की २४ वीं जनवरी घी । सो यह समझ में नहीं आता कि चैत में जनवरी कैसे पड़ सकती है पीर २४ वीं जनवरी इस वर्ष में किसी महीने में भी पड़े परन्तु उस दिन तो गुरुवार में कदापि पछी नही सकता है।