444444444444444444444444444444444444444* विहाराविहार ।। | अतर दिखावत ताहि लइ रोटी सँग खहे । जुसी सो नहिँ मधुर भाष नासा सिरहे ॥ क्यों याकै ढिग भाव ताव भापत उलेल को । सुकवि देखें ।
- यह हँसत आचमन करि फुलल को ।। ७५३ ॥
पुन: ।
- अतर दिखावत ताहि न चीन्हत जो फुलेल कों। नान मिलाय भात सँग
- गपकत नित्त तेल को ।। सुकवि मिल्या रिझवार यहै ताहि मूरख हिय धरि ।
३ फूटे तेरे भाग जात नहिँ क्यों अधमुख करि ॥ ७५४ ॥ कनक कनक ते सोगुनी मादकता अधिकाइ । उहिं खायें बौराई जग इहिं पायें बौराई ।। ६४८ ॥ ॥ इहिं पायें बाराइ स सुधि हाय विसारत । सुनत निहारत नाहिं नाहिं
- सुति वैन उचारत ॥ मदमाती सा रहत कवि झूठी बक बक तें । यातें
- सांची कही सोगुना कनक कनक ते ॥ ७५५ ॥
पुनः । । एहिं पायें घोराय कितक हु धीरज राखे । कळू न थिरता लहे छनक रीझे में इन माख ॥ सुकवि मत्त सा होत जगत सव यासु भनक तें । यामैं तनक
- न झूट सोगुना कनक कनक ते ।। ७५६ ॥
वड़े न हुने गुननि विन विरद इड़ाई पाई ।। । कहत धतूरे सौ कनक गहनो गढ्यो न जाइ । ६४९ ॥ । | गहन गयो न जाइ धतूरे हों कि भाता । पुष्कर जल से कहत सुरभि नहिं गन्ध सुहाती ॥ चन्द कपूर ने कारित जात उड़ त्यो दिन इज ।
- रन कवि नाम हैं कहा गुननि दिन बड़े न हृजे ।। ७५७ ।।
• दुर • इन करें मई मुन् । अमर पैर टूमरा पर्ष कमन ! ' दन्दन कपूर (धनमार•