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बिहारी बिहार ।

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बिहारीविहार। * क लगत सुहायो । छनक वियोग हु याद परे अतिसै हिय सिहरत । सुकवि जोरि जोरी जन जन जुग जुग मिलि बिहरत ॥ ६७६ ॥

  • कियौ सबै जग कामबस जीते जिते अजेइ । । । कुसुमसर हिँ सर धनुष कर अगहन गहन न देई ॥ ५८१ ॥ अगहन गहन न देइ काम काँ बान सरासन। + मत्त किये सब गैंदा अरु गुलमेंहदीवासन ॥ बुलबुल की बोलन मन मोलन लेत डग हि डग । सुकवि * समरस्रम बिना लखो बस कियो सबै जग ॥ ६८० ॥

आवत जात न जानिये तज तेजहिँ सियरान । घरहिँ जमाई लौं घट्यो खरौ पूस दिनमान ॥ ५८२ ॥ खरो पूस दिनमान मान धाँ कहाँ आँवायो । नरनारिन सब आड़ छाँड़ि . हिलिमिलि सुख पायो । तीखी तीखी बाने त्यागि लै नरम निभावत । कब आयो कब गयो सुकवि कछु बूझि न आवत ॥ ६८१ ॥ + तपनतेज तपतातपन तूलतुलाई माह ।। सिसिर सीत क्यै हुँ न घटै बिन लपटे तियनहि ॥ ५८३ ॥ विनलपटे तियनाई हटै नहिँ सीतकसाला । लहँ दुसाला और मसाला | मिटै न पाला ॥ सुकवि रसीली बिना थरथरी जात न तन तें । होत कछु नहिँ * मखमल मालिस तूल तपन हूँ ॥ ६८२ ॥

  • यह दोहा अनंरचन्द्रिका में नहीं है। अर्थ,-अगहन ने सब जगत को काम के वश किया सब अजेय को भी जीता अव काम को हाथ में धनुवाण नही ( गहन ) पकड़ने देता ॥ अर्थात्

अगहन ने स्वयं काम के आयुध का काम किया ॥ * अगहन मे गेंदा गुलमेंहदी फूलता है, और बुल| वुल बोलतो है ॥ * समरंस्रम् = कामदेव का परिश्रम अथवा युद्ध का परिश्रम ॥ * सूर्य के तेज से, । आग के तापने से औ रूई की रजाई में ॥