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बिहारी बिहार ।

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| बिहारबिहार। *हठ न हठीली करि सुकै इहिँ पावसऋतु पाइ। आन गाँठ छुटि जाय त्यै। मानगॉठि छुटि जाय ।। ५७४ । | मान गाँठ छुटि जाय आपु ही बिना मनाये । रहि नहिँ सकत इकन्त । कन्त विनु होय लगाये । सिखवन सखियन की नहिँ सुनत हु सुकबि छबीली । पावसरितु मैं हटकि हटावत हठन हठीली ॥ ६७२ ॥ वे ई चिरजीवी अमर निधरक फिरौ कुहाइ । छन बिछुरे जिनकी न इहिँ पावस आयु सिराइ ॥ ५७६ ॥ पावस आयु सिराई नाहिँ चिरजीवी सोई । उन पै कोटि दधीचिहाड़ वारहु सब कोई ॥ उन हीं पूजहु बरसगाँठदिन बात यह थिर। लोमस हूँ साँ अधिक सुकवि जीहैं. वे ई चिर ॥ ६७३ ॥ | पुनः ।। | पावस आयु सिराई गई नहिँ जो बियोग लहि। तो तिहिँ बिष अरु बान ॐ आदि हू मारि सकत नहिँ॥ भूष प्यास हिम घाम सहत नहिँ मरिहें ते । ‘सुकबि बिरह जो जिये असर निहुचे हैं वे ई ।। ६७४ ।। अब तज नाम उपाय को आयो सावन मास । खेलन रहिब छेम सौं केम* कुसुम की बास ॥ ५७६ ॥ । केमकुसुम की बास लगे आपुहि चलि ऐहैं । पिऊ पिऊ धुनि मोरन की। * करि जोर सुरै हैं॥ लखत धराधर से धुरवा की धूमभरी + धज । सुकबि लागि । हैं गरे साँवरी चिन्ता अब तज ॥ ६७५ ॥ .. ॐ यह दोहा अनवरचन्द्रिका में नही है । ' विरहिणी नायिका से सखी की उक्ति, “अब '(ना यक के बुलाने के) उपाय का नाम-छोड़, सावन आया, कदम के फूल की सुगन्ध..उड़ रही है अब (बिदेश में ) कुशल से रहना खेल नहीं है ॥ * कैम = कदम्बे,।' x उपद्रव से भरी चाल । '