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बिहारी बिहार ।

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विहारविहार ।। और बिगारी ॥ अंगराग हू अंग माँहिँ लागत जनु दूषन । सुकवि तऊ विनु । काज कहा धारति तन भूपन ॥ ६०५ ॥ मानहुँ विधि तन अच्छ छवि स्वच्छ राखिवे काज । । । दृगपगपॉछन काँ किये भूषन पायन्दाज ॥ ५१५ ॥ भूपन -पायन्दाज होत जो नाहिँ तिया अँग । तो ये मैले होत पाइ मैली : डीठिन सँग ॥ नजर इजर सब परो इनहिँ पै तिय सुख लॉनहु। सुकवि याहि सों भूपन विधि ने कीने मानहु ॥ ६०६ ।। | ॐ सहज सेत पचतोरिया पहिरे अति छबि होति ।। जल चादर के दीप ज्यौं जगमताति तन जोति ॥१६॥ जगमगाति तन जोति आपु ही स गतइपन । ता के बिच बिच झलमलात कछु कछु सित भूषन । लहलहात सोभा चहुँदिस सजि सजि सजधज से । सुकवि नैन नहिँ ठहरत लखि इसि अंग सहज से ॥६०७॥ देखी सो न तु ही फिरति सोनजुही से अंग ।। दुति लपटनि पट सेत हूँ करत बनौटी रंग ॥ ५१७ ।। । कति घनटी रंग पीत मोती अरु हीरन । करत हरे पुनि नील कंचुकी चा दर चीरन । केसरचन्दनचर::चहूँ उड़वत सी पेखी । बेली सी वह सुकवि * आजु अलबेली देखी ।। ६०८ ॥ १ : दो दर कृधि को टीका में है । “जन्नादर के दीप यी प्राय: अ अके * * * १२ ट क जाते हैं कि यर में पड़े के भनि जन्न क्षता है र दुमके उम 4 ३ क २३ ३ उन्ले में गिरने से झलनात अनभित होता हैं । म्हार के * : * * ॐ शानदार बार में भर तक ४ र अयोध्या में भी वर्तमान अयोध्या नरेश

  • * * *शिरी ॐ ॐ ममय में भी यह जान्न विदित होता है ? नोटीरङ्ग