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बिहारी बिहार ।

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विवारीविहार।। हर न आई । छेयोनासा छेद तऊ नहिं हव्यो रुकि रह्यो । सुकवि नैन सरं सर नछ भयो अति झोक झकि रह्यो । ५६८ ॥ :: :: :::: :::: पाँय महावर देनकों नाइन वैठी आय । फिर फिरि जानि महावरी एडी मीडति जाय ।।५।। एड़ी. मीड़ात जाय अति हि कोमल कपास सी ।अति अरुनता विलोकि वावति अधिक आस सी ॥ नाक सिकोरनि देखि समुझि कछु सुकवि ऐचिः कर । लखि बदरंग लजाय देत नहिँ पाय महावर ॥ ५६६ ॥. ... । | कोहर सी एडीन की लाली देखि सुभाइ : : .. | पाय महावर, देन को आप भई वे पइि ।।५०९॥ | आप भई वेपाइ चटक टकटकें निहारतः। अरित लखि गारत है आरत हिय जनु हारतः ॥ पुनि पुनि पट साँ, पछि पेखि रही छवि को जहर। सुकवि विलोकति नाइनि पाइनि रेंग ज्यॊ कोहर ।। ६०० :::: : ::::: किंय हायल चित+चाय लगि वर्जि पायल तुव पाये । पुनि सुनि सुनि मुख मधुर धुनि क्यों न लाल ललचाय ॥५१०॥ : क्यों न लाल ललचाय हाय पायल तुअ याजति । झीने से झनकार सुनत | भर में भयो । वड न १ कोहर= इन्द्रायन का फल (नानचन्द्रिका) कीर = 'विलादती इतक'। । मंत्र टोका ) अरिप्रमाद ने भी ट्रायन का फल ही मूमझ के अनुदाद किया है। जैसे इन्ट्रवा | रत् तम्या: पावभावरियम् । पदयोदतुमलकमममधूर्तपत्न्यासी और कवियों ने भी कोर में एत्रों को उपमा ६ अंमें कोहर को लज़पाजंल विद्रुम को इतनी जो वैधृक मैं कौत हैं। र रो र दीप सुन के मुकता सम पीत ३ पावे धेरै दर १"दुर मोतित में मनि पा॥ धन होते हैं तो ये चारों और रचूनरी के x नई यिन त १ व २ } + चाय : चाइ ( इभुवे अर्थ में बहुत भीड़ तोड़ ३ प्रेमान )।