पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२२४

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विहारविहार ।। जटित नीलमनि जगमगति साँक सुहाई नॉक ।.:". मनो अली चम्पककली बास रस लेत निसाक ।।४७२ ।। चलि रस लेत निलॉक वैर चम्पा सों भुल्यो । मन्द सुगन्धित साँस झको- रन मद स फूल्यो । अति अदभुत रस पाइ भयो थिर मौन साधि धनि । । फसे सुकविदृग लखत सींक मैं जटित नीलमनि ॥ ५६१ ॥ जदपि लौंग ललितौ तऊ तू न पहिरि इक आँक *। सदा संक बढियै रहै रहे चढी सी नाँक ।। ४७३ ॥ | रहे चढ़ी सी नाँक होत डर मान करे को । भेह वैक हैं आप भयँ सक धीर धरे को ।। रतनार ये नैन और दुविधा डारत अलि । सुकवि जाँउ चलि । पहिरि न नीकी जदपि लोग लंलि ।। ५६२ ॥ इहिं है ही मोती सुगथ त नथ गरव निसाँक । : । जिहिं पहिरे जंगदग ग्रसत हँसात लसति सी नॉक ॥४७४।। हँसात लसति सी नाँक पहिीर के हैं ही मोती। केटिन मोती वमति लखे विन दृग नहिं लेती ॥ सुकवि लखत पुनि रोम रोम मोती उमगे ही। तऊ समें वस किये नाँक मोती इहिं हे ही ॥ ५६३ ।। वेसरि मोती धनि तही को वृझे कुलजाति ।। पीवो कर तिर्यओठ को रस निवारक दिन राति ॥ ४७५ ॥ रस निधरक दिन राति पीउ सीपी के जाये । पानी पानी वह विके अम् सकु विधाये ॥ नुकवि रह्यो तू सङ्ग सदा कड़ी अरु घाँधनि । त बड़े तुग्न

  • पुन्य ताहि सर माती धनि ॥ ५६४ ।।

३ १* अंक नियर र १ • *55) • दह दोल्लर रिप्रमाद के प्रद में नहीं हैं।