पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१९०

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विहारविहार । । । १०७ । घाम ल नरम भयें रति ।। कपाँच ही भली लगति चादर नहिँ उतरात । सुकवि आज हेमन्त सवै विधि अनि करयो पति ॥. ४३२ ॥ | वा ही निसि तें ना मिट्यौ मान कलह की मूल ।। भले पधारे पाहुने व्है गुड़हर को फूल ।। ३६० ॥ ६ गुड़हर को फूल पुलक सौ फूल पधारे। तेहिँ छन प्यारी नैन रङ्ग गु- ल्लाला धारे ॥ फुल झरति सी बात कही तुम अपनी दिस हूँ । सुकवि लगी -फुलझरी तिया हिय वाही निस तें ॥ ४३३ ॥ 4: खरे अदव इठलाहटी उर उपजावति त्रास ।। दुसह संक विख की करे जैसे सौंठ मिठास ॥ ३६१ ।। जैसे साँठ मिठास सक विप को उपजावै । धनुष नये पै प्रानहरन को में रूप दिखावै ॥ जिमि निकलंक मयङ्ग असुभ दरसावत निखरे + । अव सुकवि

  • का देखि होस मेरे तिमि बिखरे ॥ ४३४ ।

दोऊ अधिकाईभरे एकै ग गहराँय । । | कौन मनावै को मनै मानै मति ठहराय ॥ ३६२ ॥ ।

  • माने मति ठहराय तमासा होरी कीनो । प्यारी कहत लाल वरवस

अचरा गहि लीनो । कन्दुक लियो छिपाय स्याम भापत पुनि साऊ । खेल खेल ही सुकवि आज से हैं दोऊ ।। ४३५ ॥ । हँसि हँसाय उर लाय उठि कहि न रुखहें वैन । जकित थकित से व्है रहे ताकत तिरीछे नैन । ३६३ ॥ तकत तिरीछे नैन दीनताभरे साँवरे । तेरी हाही खात भोरस भये ड़र ८: इन पद ? अमिर हैं कि यह झगड़ा कराने वाला फल है हैं क फुलझरी = बाद । ३ ४ : ४ाठी : एठी । अह टोहा ४रिप्रसाद के ग्रन्थ में नहीं हैं ॥ ४ निखरे चासे ।।

  • : यह दो हरिप्रभाट के श में भी है ।।