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बिहारीीबहार।।

  • देखि प्रानप्यारी पुनि मानाति ॥ पुलकि पसीजति पूरित प्रेम जुड़ाई रही जिय।।

सुकवि पिया को रूप रह्यो अरु हीय भयो पिय ॥ ४२१:॥ ... । लखि रीझति रिझवारि आप अपने हीं रूपै। कुण्डल कलगी मुकुट धारि छवि करी अनूपै ॥ दर्पन ह क चूमि उमङ्ग निकारंति जिय के। राधा बांधा- हरनि सुकवि राची रँग पिय के ॥ ४२२ ॥ । लाल तिहारे रूप की कहौ रीति यह कौंन ।। | जासौं लायँ पलक दृग लागै पलक पलौ न ॥ ३५० ।। लार्गे पलक पलौ न सबै निको बीतत जागत । कछु टोना सो करत नींद में हू कित : भागत ॥ कबहुँ डहड़हे सुकबि बहावत कब हूँ पनारे । नैन । नसैले भये रूप लखि लाल तिहारे ॥ ४२३ ॥ अपनी गरजनि बोलियत कहा निहोरो तोहि ।। तू प्यारो मो जीय की मो जिय प्यारो मोहि ॥ ३५१ ॥ | मो जिय प्यारो मोहि चहत मैं जीय जियावन । या स तुम, सौं बोलि अहै इहिँ सुधा पियावन ॥ बरजनि कीजै नाहिँ मानिये मेरी अरजनि ।।

  • मरजान प्यारे सुकवि बोलियतु अपनी गरजनि ॥ ४२४ ॥

तो ही निरमोही लग्यौ मो ही अहै सुभाव ।। अनआये आवै नही आये आवे आव ॥ ३५२ ॥ आये अवै अव याहि सों मोढिग झटपट । तोबिन हियबिन भई प्रान नर०. पियके, ध्यान गही जु तिहिं गही आरसी बाम। मन करि हरि ६ कै लखौ तिय. छबि आरसि ।

  • * ॥ * यह कुण्डलिया इस भाव पर है कि नायिका नायक पर अनुरक्त ही नायक बन बैठी और है
  • , *क रूप के) प्रतिविम्व को आरसो में देख रौझती है ॥ तेरा (ही) मन, निर्मोही है (लग्यो ।
  • पर नजर भरा हृदय लेगा सी मेरे मन का भी यही स्वभाव हो गया, तुमारे आये बिना मन हमारे
  • स सारी सुमारे ये से आवेगा इस लिये आव। (इस दोहे में न प्रसाद है न उत्तम उक्ति है)। ६