पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१८२

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- - *- बिहारीविहार। रही लटू व्हे लाल हौं लाख वह बाल अनूप । । कितो मिठास दयौ दई इते सलौने रूप ॥ ३३२ ॥ इते सलोने रूप इती विधि दई मिठाई । अधर मधुर मुसकान सुधा

  • मानो वरसाई । तापै मीठे वचन सुनत गई चकित भट्ट है । सुकविन हूँ ।
  • मुख वन्ध भयो हाँ रही लटू है ॥ ४०३ ॥

तीजपरव सौतिन सजे भूषन वसन सरीर ।। सवै मरगजे मुँह करी व मरगजे चीर ॥ ३३३ ॥

  • वह सरगजे चीर सौतिअंबरछबि नासी । टूटे हार सबै भूषन काँ दई ।

उदासी । विथुरे वरन हती माँग की कान्ति गरव सौं । सुकवि पियाप्रिय तिया सुहाई तीज परच सौ ॥ १०४ ॥ .. सोहति धोती सेत में कनकवरन तन वाल। -सारदबारदवीजुरीभा रद कीजत लाल ॥ ३३४ ॥ भा-रद कीजत लाल धरे सारद सी सोभा । पारद से मुकताहल चमकत लखि मन लोभा ।। गारद जुवजनजियन करत निरखत मन मोहति । सुकवि लखहु दारद + सो वगरावति तिय सहति ॥ १०५ ॥ हाँ रीझी लखि रीझिहो छवि हिँ छवीले लाल ।। | सोनजुही सी होति दुति मिलति मालतीमाल ।। ३३५॥ माल मालती सोनजुही सी हिय हरसावति । कुन्दकली है चम्पकली - .....-- .. ... .

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--- • दुई इन्ध होना { भोजन न चलना ) सीटे का भी धर्म है। • मरद धारद-वीज़री:भा, शरद |

  • * को दिन की का िहै रेट के अंत मेंद में विजली नहीं होती रम तिचे अभृतोपमा

। भूके झन सारद भरपती दारट् = दिप उसके अङ्ग में सोने की मी ऐसी चमक । ३ कि मानक के भूतफल पौने हो जाते हैं ।। -