पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१५०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विहारविहार ।। जुग ललचाये ॥ अङ्ग अङ्ग आलिङ्गनहित उमगाये 'चारू । ठठाकरह्यो । । मोहिनीमन्त्र मारयो जनु मारू ॥ २७१ ॥ | गल्ली अधेरी सॉकरी भौ भटभेरो आनि । परे पिछवाने परसपर दोऊ परस पिछानि ॥ २२१ ॥ | दोऊ परस पिछानि दोऊ दोउन पहिचान्यो । उन कर चूरी लही लकुट उन उन कर जान्यो ॥ अहो कौन जू कौन कहनि मधुराई हेरी । सुकवि स्याम स्यामा भेटे लहि गली अधेरी ॥ २७२ ॥ लटकि लटकि लटकत चलत डटत मुकुट की छाँह ।। चटक भरयौ नट मिलगयो अटक भटक बनमॉह ॥२२२॥ अटक भटक वनमॉह लकुट कर लिये सुहावत । कनक कटक कर छटा छटकि रही हिय हरसावत ।। पीरे पट को पटुका कसि निरखत जमुनातट ।। सुकवि नैन मैं खटक रही लटकी दोऊ लट ॥ २७३ ॥ | अहै *दड़ी जिन धेरै जिन तू लेइ उतारि । नीकै है छाँकी छुए ऐसे हाँ रहि नारि ॥ २२३ ।। ऐसे हीं हि नारि दोऊ कर ऊँचे कीने । पीन पयोधरसम्भुजुगल को दर-

  • सन दीने ॥ ऊँचे दृग हू की दिखरावत छवि मद ऍड़ी । सुकवि खरी रह

में ऐसे हि लीने अहे दहेड़ी ॥ २७४ ॥ | मने न मनावन कौं करै देत रुठाय रुठाय ।। कौतुक लाग्यो पिय प्रिया खिझ हू रिझवत जाय ।। २२४॥ खिझहू रिझवत जाय पीय तिय आनंद बरसत । टेढ़ी भहन लखत छन • दत्त कदि को टीका याने अन्य में यह दोहा नहीं है । छ। टों की हड़ी । मुभाम् ।।