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लार्ड लारेन्स ने इनकी अति प्रशंसा की थी । इनको गवर्मेण्ट से कै० सी० एस • आई को उपाधि मिली।

थी । संवत् १९३६ में महाराजा ने राजद्रोहियों से जो तोप क्वीनी थी वह अभी तक राजभवन में वि । राजमान है । इनके सुयोग्य मन्त्री लक्ष्मणप्रसाद घे ॥ महाराज को वीरता और सुशासन के सिवा

  • विद्या को भी बड़ी रुचि थी यहां तक कि ज्योतिष में इनने यन्त्रराज बनवाया । और संगीत की भी

। इनके यहां बड़ो चर्चा रहती थी ॥ संस्कृत में भी ये अद्वितीय पण्डित थे । इनने पन्द्रह लोक का

  • काशोवर्णनात्मक एक अविमुक्तपञ्चदशौ ग्रन्थ बनाया है वह पण्डित सूर्यवलिरामशर्मरचितटोकासहित

वर्तमान महाराज बहादुर की आज्ञा से छपा है ॥ ब्रजभाषा में इन महाराज के रचित तीन ग्रन्थ मैंने देखे हैं । १ शृङ्गारलतिकार ( शृङ्गाररस के स्फुट कवित्त सवैये ) २ शृङ्गारलतिका की टौका ( व्रजभाषा गद्य में ) ३ शृङ्गारचालोसी ( कवित्त सवैये ) ॥ महाराज ने निज विषय में केवल शृङ्गारचालीसौ में इतना लिखा है ॥ दोहा । “अवध ईस मण्डन भुवन दर्शन सिंह नरेस । . तिन के यश सों सेत भो दिशि दिशि देश बिदेस ॥ १ ॥ तिन को सुत अति अल्पमति मानसिंह हि नदेव ।। किय शृङ्गारचलीसिकार हरिलीला पर भव ॥ २ ॥ इनकी रचित शृङ्गार लतिका की आदि और अन्त की कवितायें क्रमश: ये हैं । ( इस ग्रन्थ में भी से वंशचरित मिति आदि कहीं कुछ नहीं हैं, इसको टौका में भी कुछ इस विषय का उल्लेख नहीं है इस के लिये इसके बनने का समय मैं नहीं लिख सकता ) | आज सुख सोवत सलोनी सजी सेज मैं घरी के निसि बाकी रही पीछिले पहरे की । भड़कन लागो पौन दछिन अलच्छ चाक चांदनी चहूं हूँ घिरि आई निसिकर की। द्विजदेव की सौ मोहि ने कह न जानि पस्यो पलट गई धौं कबै सुषमा नगर की । ओरै मैन गति जति रैन की सु ओरै भई ओरै भई रति मति ओरै भई नर की ॥१॥ वित चाहि अवझ कहै कितने छबि छौनी गयन्दन की टटकी। कवि ते क हैं निज बुडि उदै यहिं सीवी मराल न की मटकी ॥ ६ उनने यों कहा था ! You have, in my estimation, Special claim to hono1" and grutitude, in asmucbas, at the commencernent of the mutiny in 1857, you gave refuge to more than 50 English people in your fort at Fyzabad, most of vhorm tvete helpless vomen and children, and thus by God's mercy; vere.instrumental in saying all their lives.