पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१४३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारीविहार ।। सुभर भरच तुव गुनकननि पचयो कुबत कुचाल । क्यौं ध दारयौ ल हियो दरकत नहिँ नंदलाल ॥ १९६॥ दरकत नहिँ नँदलाल अघात हु लहे अचूको । अति धुकधूको होप्त होत नाहिन टुकटुको । कहूँ कौन स सुनै कौन जे कछु संकट हुआ। सुकाब लखो किन आय गुनकननि सुभर भरयो तुअ ॥ २४५ ॥ केसर केसरकुसुम के रहे अंग लपटाय। लगे जानि नख *अनखली कत बोलत अनखाय ॥१९॥ | कत वोलति अनखाय अनख की बात तिहारी । कुंकुमतिलक लिलार लखात ज्याँ जावकधारी ॥ ऊँचे ऊँचे साँसन मैलो कर रही बेंसर । सुकवि खुसी है भाषि करत क्यों अँगसँग केसर ॥ २४६ ॥" | रस के से रुख ससिमुखी हँस हँसि बोलति बैन । | गूढ मान मन क्याँ रहै भये F बूढ़सँग नैन ॥ १९८॥ भये बूढरँग नैन भृकुटि घन सी घहराई । तीखी तीखी दीठ. चमक च- पला चमकाई ॥ रुकि न सक्यो किहुँ भॉति आइ झलक्यो जनु पावस ।। सुकवि हु क वहरावत सी तू दरसावत रस ॥ २४७ ॥ मो हू स बातन-लगे लगी जीह जिहिँ नॉय +।। सोई लै उर लाइयै लाल लागियत पाँय ॥ १९९ ॥ लाल लागियत पाँय हाय क्यों मोहि सतावत । जगे रौन के सोवत क्यों नहिँ क्याँ दुख पाचत । छिपि न सकत है अजू लगत मन जब को हू स । या स सुकवि प्रनाम आजु लीजै मो हू स ॥ २४८ ॥ .. | ३ अनखली-कोप के स्वभाव वाली वा अनोखी ॥ राजपुतानी (अणखली)

  • वृद्—इन्द्रबधू। जिसके नाम में जौभ जा लगी ॥ :