बिहारीबिहार।
- कुण्डल लपटायो । गरलसरिस मृगमदट्टीका को दाग कण्ठ दिय । सुकबि
मदनमदहरन धन्य तुअ प्रानप्रिया हिय ॥ २२० ॥ .. नखरेखा सोहैं नई अरसहिँ सब गात ।... - .:. हैं होत न नैन ये तुम सौहें कत खात ॥ १७२ ॥ | तुम सौहें कत खात कौन पूछत तुम सौं हैं। बदन लजहँ झलक रही है। तिय हीयवाहें ॥ तरसा से देह बिलच्छन राजंत बेखा । ग्रीव बिंदुरी
- सुकवि हीय सहित नखरेखा ॥ २२१ ॥
| * पल सोहूँ पगि पीकसँग छल सौं हैं सब बैन । बलि सौंहँ कत कीजियत ये अलसौहें नैन । १७३ ।। ये अलसँहें नैन होत नहिँ हमरे साहूँ । निघरघटै भाव बदन तुव होत हँसाएँ । सुकवि छबीले भाल रह्यो जावकसँग साँ रगि । धनि दिखरायो । दरस पीकसँग पल साँहँ पगि ॥ २२२ ॥ | पट स पौंछ परी करी रखरी भयानक भेष। .... नागिन व्है लागत इगनि नागबेलिरंगरेख ॥ १७ ॥ .: नागवेलिरँगरेख कोप साँ अरुन नागिनी। दूर हि स डसि रही अगिनि
- सी जोति जागिनी ॥ + मुरलीवारे तुम बिनं कौन बचावै झट सौं। सुकवि
- लखी नहिँ जात झटकि झारो निज पट सौं ॥ २२३ ॥
जिहिँ भामिनि भूषन रच्यों चरनमहाउर भाल। ..। उहाँ मन अखियाँ रँगी ओठन के रँग लाल ॥ १७५ ॥ ओठन के सँग लाल उहाँ अँखिया रँग दीनी। मेहँदी के कर फेरि कप- लनि नवदुति कीनी ॥ व्है अनुरागन अरुनं चले अरुनोदय तजि तिहिँ ।
- सुकवि महाउरमोहरछापं. दीनी भामिनि जिहि ॥ २२४॥. ...
- यह दोहा अनवरचन्द्रिका में नहीं है। सँपिन से बचाने को देंगीवाला चाहिये सो तुम हो।