पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२५

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बिहारीबहार।' जल चमकायो । अवधिअधार न होतो तौ जीवन को गछतो । सुकवि चलो अव वेगि नाहिँ जैहै जिय अछतौ ॥ १७१ ॥

  • चित तरसत मिलत न बनत बसि परोस के बास । ।

छाती फाटी जाति सुनि टाटीओट उसास ॥ १२८॥ टाटीओट उसास सुनत फाटत सो हियरो । आह दाह सो करत हाय झुरसावत जियरो ॥ मोखा और झरोखा लखि लखि दुग दोऊ वरसत । उछरि जान मन चहत सुकबि ऐसो चित तरसत ॥ १७२ ॥ रहिहैं चंचल प्रान ये कहि कौन की अँगोट। ललन चलन की चित धरी कल न पलन की ओट ॥१२९॥ कल न पलन की ओट जलन अँग अङ्ग जरावत । असुवाजलन भिंगाइ मैन अति देह कैंपावत ॥ छलन बलन क्रिमि किये पीय रहिवो चित गहिहैं। मदनदलन बिनु सुकवि जीय कैसे कै रहिहैं ॥ १७३ ॥ अज्र्यों न आये सहज रँग बिरहदूबरे गात ।। अब हाँ कहा चलाइयत ललन चलन की बात ॥ १३०॥. ललन चलन की बात कछु अव हीं न चलैयो । नीठ नीठ सूखे आँसून

  • मत फेरि वयो। बार बार तुम कौं बिनवत हौं हाहा खाये । सुकबि लखहु

तियगात सहज रँग अजें न आये ॥ १७४ ।। पूस सास सुनि सखि पैं साँई चलत सँवार । गहि कर बीन प्रबीन तिय राज्यौ राग मलार ॥ १३१ ॥ राग्यो राग मलारसेघ मेघ हुँ मँडराये। गरजि गरजि पुनि बरसि वरसि वह दोहा शृङ्गारसप्तशती औ देवकीनन्दन की टौका में नही है ॥ १ मेघमल्लार प्रसिद्ध राग है ॥