पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२१

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16.5=5.25 | बिहारीबिहार। हठ हित करि प्रीतम दियो कियो जु सौति सिँगार। अपने कर मोतिनगुह्यो भयो हरा हरहार * ॥ १२० ॥ | भयो हरा हरहार हुस बढ़ि विष बगरावत । दूर हि स जनु डसत कोटि फन सौ फुफकावत ॥ चहूँ चमकरसना लपकावत मनहुँ कोप भरि । सुकवि कालि ही लियो छली झूठो हठ हित करि ॥ १६४ ॥ सुरंग महावर सतिपग निरखि रही अनखाय । पियअँगुरिन लाली लखें खरी उठी लगि लाय ॥ १२१ ॥ खरी उठी लगि लाय बदन पै छाई लाली । + धूमघटा सी बङ्ग भौंह भई तेंहिं छन आली ॥ अङ्गारा से नैन भये अरु साँस मनहु-झर । सुकबि बचन- चिनगी चमकत लखि सुरंग महावर ॥ १६५ ॥ | रहौ गुही बेनी लखे गुहिबे के त्योनार + । | लागे नीरचुचावने नीठ सुखाये बार ॥ १२२ ॥ | नीठ सुखाये बार भये पुनि जल सौं तरतर । नीठ, नीठ सुरझाने पुनि अरुझाने तुव कर ॥ कुसुमकली मुरझाइ परी भई नीर चुहचुही । सुकवि चराओ गाय जाहु चेनी रहौ गुही ॥ १६६ ॥ पियप्राननि की पाहरू जतन कति नित, आप । जा की दुसह दसा भयँ सौतिन हूँ सन्ताप ॥ १२३ ॥ सौतिन हूँ सन्ताप सवै घबराई डोलत । छन आवत छन जात साँस ऊँचे

  • भरि बोलत ॥ कदलीदलन वयारि कति मुरझाने से जिय ॥ सुकवि मनावत ।
  • विधिहिँ रहैं नाके दोऊ तिय पिय ॥ १६७ ॥
  • हरहार = शेषनाग ॥ हार भी खेत हैं शेष का भी खत ही वर्णन है शेषनाग सा भयानक हो ।
  • गया ॥ १ धुआँ की घटा सौ । झर = फल = ज्वाला की लपट ॥ + त्योनार = प्रकार, कौशल ।।