पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१२०

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| विहारीविहार ।। । । विलखी लखै खरी खरी भरी अनख बैराग । । - मृगनैनी सैन न भजै लखि बेनी को दाग ।। ११७ ॥ | लखि बेनी को दाग कुंज के ठाढ़ी कोने। सोने भये कपोल मनहु मारी कोउ टोन । आँसू नैनन देखि सखिन हू नाहिँन दुलखी। सुकवि बदन पट ढाँपि मोरि सुख प्यारी चिलखी ॥ १६१ ।। + दीठि परोसिनईठ व्है हैं ज गहै सयान । सबै सँदेसे कहि कह्यो मुसकाहट मैं मान ॥ ११८ ॥ सुसकाहट में सान समुझि सव बूझी सोऊ । फिरि देख्यो कछु हँसनि- लस्यो सुख नायक को ऊ । हँसी सखी हू तिरछे लखि दोऊ दिस लोइन ।

  • सुकवि लखत सरमानी ऍची दीठ परोसिन ॥ १६२ ।।

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== == = = == = = == गह्यो अबोलो बोलि प्यो आपै पटै बसीठ।। दीठ चुराई । दुहुन की लखि सकुचहीं दीठ ॥ ११९ ।। लखि सकुचाँहीं दीठि दुहुन की प्रीति जनाती । सुखछवि हू अरसानी सी

  • मानहुँ मदमाती । काजर कछु कल्ले पूँछे कपोलन झलक तसोलो ।। सुकवि

छिपाये हु लखिगई नागरि गह्यो अबोलो ॥ १६३ ॥ ३ मुली :: दुहरा के हो गई।

  • : अर्थ,डोटि देव के नायक को (परोमिनईठ ६) परोसिन की इष्ट हो *, मित्र हो के । मम:
  • कटारी नै कती ? : था। परोनिन में कहती हैं व्यङ्ग नायक पर है ) मृद मनसे कहके नुमकाई, इम

है किार सुन के रान विदित हुयी । (कुण्डलिया) उसका मान भमझ उसके पति में अपनी

  • ति का नना परोमिन रमझ गई। तब वह इम प्रिय की श्रर झाकी, तो उसे भी कुछ मुसकिराता

३ । ऊ की इन दोन का मिलती देइ हँसी, तब परोमिन ने भरमा के अपनी श्रा

  • * * * * * दुइन : दू धर मिय की । .

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