पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/११६

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बिहारीविहार । । खिंचे मान अपराध, ते चलिगे बढे अचैन । .. ज़रत दीठि तजि रिस खिसी हँसे हुल के नैन ॥ १०२ ॥ ।

  • .. हँसे दुहुँन के नैन:जुरत ही दीठ दीठि सौं । लगे ललकि ललचाय रुके
  • रोके न नीट सौं । निज अरु पर क भूलि गये आनंदजल साँचे । सुकवि
  • स्याम सा लगे नैन अब खिंचत न खींचे ॥ १४४ ॥ . . . . . . . .
  • राति दिवस होसै रहै मान न ठिक ठहराये ।।

जेतौ अवगुन ढूंढिये गुनै हाथ परिजाय ॥ १०३ ॥ | गुनै हान्न परिजाय दोप हुँद्रत हु- स्याम के। औगुन हू गुन होत गुनी गन- रासिधाम के । चिनगुन माल हु लखें दिनै दिन - सगुन लखाती । सुकवि सगुनहरिरूपमगन रहती दिन राती ॥ १४५ ॥ .:.

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- जौ ल लख ने कुलकथा तौ ल ठिक ठहराय । देखे, आवत देखब क्यों हूँ रह्यो न जाय ॥ १०४ ।। |, क्याँ हैं रह्यो न जाय स्याम की लखि - औकाँकी । पलक कलपसम। लगत लखंत वह सरत बाँकी । सकवि सबै कुल स्नील लाज हु राजति तौ लाँ। | जमुनातट चटनिकट लख्यो नटवर नहिँ जी ॥ १४६ ।। कपटसतर भौहें करी सुख सतराहें वैन । सहज हँसी जानि के साहे कति न नैन । १०५ ।। सहं करति न नैन लजाएँ अरु ललचाहें । हँसी चुई सी परत कपोलन । तउ पुल । अधरन में मुसुकान लसत नहिं छिपत बनावट । सुकवि

  • पास से हरिगई ३ रि बातें सकपट ।। १४७ ॥ ।
  • * यह दो अनचन्द्रिका में नहीं है। * मुगुन हरवती := कुन दियो ।
  • : ६: दोहा अनवरचन्द्रिका में नहीं है ॥ - धीच झायः = *कां ॥

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