विहारविहार । लाजगरवआरसरसँगभरे नैन मुसुकात । । रातिरमी रति देति कहि, औरै प्रभा प्रभात ।। ८४ ॥ | औरै प्रभा प्रभात भई री तेरे तन की । वेनी विथुरे वार कपोलन दुति सुवरन की ॥ छन छन मैं अँगिराति हँसात झिपि झिपि बेकाजा । जानि गये तो कहा सुकवि स कैसी लाजा ।। १२० ॥ पुनः ।। औरै प्रभा प्रभात भई वस बोलु न आली । दृग अञ्जन कलु पुँङयो
- और आई कळु लाली । सरम कहा है पट स कहा छिपावति गाला । मोती
। सुकवि सम्हारु देखें उर टूटी माला ॥ १२१ ॥
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- नट न सीस सावित भई लुटी सुखन की मोट । .
| चुप करि ये + चोरी करत सारी परी सरोट ॥ ८ ॥ सारी परी सरोट कहूँ कहुँ दाग पीक को । काजर हू की चीन्ह ईंगुर । पुनि माँग लीक को ॥ छाप महावर लगी गयो कुच केसर हू सट । सुकवि
- भई सो भई वावरीं कहा रही नट ।। १२२ ।।
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- . --- . मो साँ सिलवति चातुरी : तू नहिँ भानति भेव ।। कहे देत यह प्रगट ही प्रगट्यो पूस पसेव ।। ८६ ॥ प्रगटयो पूस पसेव कहूँ का देख्यो कोऊ । वातन ही वहराय रही अव- लोकत सोऊ ॥ देत सफाई कहा अरी पूछत को तो स । मैं गुनगरि सुकचि कपट चलिहे नाहिँ मो सों ॥ १२३ ॥ ३ नट न ” ना मत र ! दारी 7 चुगली । 4: ‘तु नः भानुनि भेष' त भेद नहीं बताती ।
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