पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/१०७

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बिहारीबिहार। यह मैं तो ही मैं लखी भगति अपूरब बाल। लहि प्रसादमाला जु भौ *तन कदम्ब की माल ॥७४ ॥ तन कदम्ब की माल भयो कैसे आली री । केसर देत लिलार देहदुति व्है गई पीरी ॥ लेत चरनजल बूंद छाइ गई अङ्ग अङ्ग महँ। सुकवि भगति । नहिँ सुनी कहूँ जैसी तो मैं यह ॥ १०७ ॥ . . . कोरि जतन कीजै तऊ नागरि नेह दुरै न । कहे देत चित चीकनौ नई रुखाई नैन । ७५ ॥ : .. नई रुखाई नैन वित्तचिकनई जनावति । दृगचञ्चलता हीय प्रेमथिर- ता प्रगटावति ॥ मन सँवरा लखात लखें दुति गोरे तन की । सुकवि न चलि है कछू अली तुअ कोरि जतन की ॥ १०८ ॥ .. . । और सबै हरषी फिरें. गावति भरी उछाह। तु ही बहू * बिलखी फिरै क्यौं देवर. के व्याह । ७६ ।। क्यौं देवर के व्याह बहू तू लेत उसासा । छिप छिपि आँसू छि सिस- कि नहिँ लखति तमासा ॥ बैठति सूने भवन बात कछु परत न परखी । तू | ही एक उदास सुकवि और सबै हेरखी ॥ १०६ ।। . ..।

  • नैन लगे तिहिं लगनि स छुटै न छूटे प्रान।

|, काम न आवत एक हू मेरे सौक + सयान ॥ ७७॥ सौक सयानन तू नाहक ही परी गूजरी। मिलत क्यों न ६ ढोल देख

  • पिक रहे कूज री ।। करत अहै क्य, कान चबाइन के छलबैना । दौरि सुकाव

| गर लागि लगे जास तुअ नैना ॥ ११०॥":

  • अर्थात् रोमाञ्चित । -बिलखी उदास । B यह दोहा कृष्णदत्तकवि के अन्य में नहीं है। + सौक = सैकड़ों