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बिहारी-सतसई
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है। गुलीबँद=गले में बाँधने का आभूषण, जिसे कंठी कहते हैं। लाल=लाल मणि। लीक=रेखा, लकीर।

(उस गोरी के) गोरे गले में उतरती हुई पान की पीक बड़ी अच्छी लगती है। (उसे कंठ तक करते समय अत्यन्त सुकुमारता के कारण) जो पीक की ललाई बाहर झलकती है, (सो) लाल-लाल लकीरों की चमक (ऐसी मालूम पड़ती है) मानो लाल मणियों की कंठी (उसने पहनी) हो।

बाल छबीली तियन मैं बैठी आपु छिपाइ।
अरगट ही फानूस-सी परगट होति लखाइ ॥१५०॥

अन्वय--छबीली बाल तियन मैं आपु छिपाइ बैठी, फानूस सी अरगट ही परगट लखाइ होति।

बाल=नवयौवना। अरगट=अलग। फानूस=शीशे के अंदर बलता हुआ दीपक। परगट=प्रकट, प्रत्यक्ष।

(वह) सुदरी बाला स्त्रियों (के झुण्ड) में अपने-आपको छिपाकर जा बैठी। किन्तु फानूस (की ज्योति) के समान वह अलग ही (साफ) प्रकट दीख पड़ने लगी।

डाठि न परत समान दुति कनकु कनक सौं गात।
भूषन कर करकस लगत परस पिछाने जात॥१५१॥

अन्वय--समान दुति कनकु सैं गात कनक न डीठि परत, भूषन कर करकस लगत परस पिछाने जात।

डीठि=दृष्टि। दुति=चमक, आभा। कनक=सोना। कर=हाथ। करकस=कठोर। परस=स्पर्श। पिछाने=पहिचाने।

एक ही प्रकार की आभा होने से (उसके) सोनें के ऐसे (गोरे) शरीर में सोना (सुनहला गहना) नहीं दीख पड़ता--वह शरीर के रंग में मिल जाता है। (अतएव, सोने के) गहने हाथ में कठोर लगने से स्पर्श-द्वारा ही पहचाने जाते हैं।

करतु मलिनु आछी छबिहिं हरतु जु सहजु विकासु।
अंगरागु अंगनु लगे ज्यौं आरसी उसासु॥१५२॥