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बिहारी-सतसई
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तीज-परब=भादो बदी ३ का त्योहार। मरगज=मलिन, गैंदी हुई। चीर=साड़ी।

तीज के व्रत के दिन सौतिनों ने गहनों और कपड़ों से अपने शरीर को सिंगारा; किन्तु उसने अपनी (उस रति-मर्दित) मलिन साड़ी से ही सबका मुँह मलिन कर दिया।

नोट--पति-सहवास में रौंदी हुई उसकी मलिन साड़ी देखकर सौतों ने यह जाना कि रात में इसने प्यारे के साथ केलि-रंग किया है।

पचरँग-रँग बेंदी खरी उठी जागि मुखजोति।
पहिरैं चीर चिनौटिया चटक चौगुनी होति ॥१३४॥

अन्वय--पचरँग-रँग बेंदी खरी, मुखजोति जागि उठी। चिनौटिया चीर पहिरैं चटक चौगुनी होति।

चिनौटिया चीर=कई रंगों से रँगी लहरदार चुनरी। चटक=चमक।

पचँरगे रंग की बेंदी बनी है। (उसे लगाते ही) आबदार मुख की ज्योति (और) जगमगा उठी। (उसपर) रंग-बिरगी चुनरी पहनने से चमक (और भी) चौगुनी हो जाती है।

बेंदी भाल तँबोल मुँह सीस सिलसिले वार।
दृग आँजे राजै खरी एई सहज सिंगार ॥१३५॥

अन्वय--भाल बेंदी, मुँह तँबोल, सीस सिलसिले बार; दृग आँजे, एई महज सिंगार खरी राजै।

भाल=ललाट। तँबोल=पान। सिलसिले=सजाये हुए, चिकनाये हुए। बार=केश। आँजे=काजल लगाये। खरी=अत्यन्त। एई=इसी। सहज=स्वाभाविक। ललाट में बदी, मुख में पान, सिर पर सजाये हुए बाल और आँखों में काजल लगाये--इसी स्वाभाविक श्रृंगार से (नायिका) अत्यन्त शोभ रही है।

नोट--

आस्यं सहास्यं नयनं सलास्यं सिन्दूरबिन्दूदयशोभिभालम्।
नवा च वेणी हरिणीदृशश्चेदन्यैरगण्यैरपि भूषणैः किम्॥