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सटीक:बेनीपुरी
 

जरी कोर गोरै बदन बरी खरी छवि देखु।
लसति मनौ बिजुरी किए सारद ससि परिबेखु ॥१३१॥

अन्वय--गोरै बदन जरी-कोर--खरी बरी छबि देखु, मनौ सारद-ससि परिबेखु किए बिजुरी लमति।

जरी-कोर=जरी की किनारी। बरी=प्रज्वलित होती। खरी=अधिक। बिजुरी=बिजुली। सारद=शरदऋतु के। परिबेखु=मण्डल, घेरा।

गोरे मुखड़े पर (साड़ी में टँकी हुई) जरी किनारी इस अत्यंत उद्दीप्त शोभा को तो देखो। (मालूम पड़ता है) मानो शरद ऋतु के चन्द्रमा को चारों ओर से घेरे हुए बिजली सोह रही हो।

नोट--यहाँ जरी की किनारी बिजली, मुखमंडल शरद ऋतु का चन्द्रमंडल है। विद्युन्मण्डल से घिरा हुआ चन्द्रमण्डल! अद्भुत कवि-कल्पना है।

देखी सो न जुही फिरति सोनजुही-से अंग।
दुति लपटनु पट सेत हूँ करति बनौटी-रंग ॥१३२॥

अन्वय--सोनजुही-से अंग सो न जुही देखी। दुति लपटनु सेत पट हू बनोटी रंग करति फिरति।

सोनजुही=पीली चमेली। लपटन=लपटों, लौं, दमक। सेत=श्वेत, सफेद। बनौटी =कपासी।

सोन जुही की-सी देहवाली उस (नायिका) को तो तुमने देख न ली (अर्थात तुमने भी देखी) जो (अपने सुनहले शरीर की) आभा की लपटों से उजले वस्त्र को भी (पीले) कपासी रंग का बनाती हुई (वाटिका में) घूमती है।

नोट--

झीन बसन महँ झलकइ काया।
जस दरपन महँ दीपक छाया॥

तीज-परब सौतिनु सजे, भूषन बसन सरीर।
सबै मरगजे-मुँह करी इहीं मरगजैं चीर ॥१३३॥

अन्वय--तीज-परब सौतिनु भूषन-बसन सरीर सजे। इहीं मरगजैं चीर सबै मुँह मरगजे करी।