हितैषिणी सखी ने—'इस लावण्ययुक्त मुखड़े पर कहीं किसीकी नजर न लग जाय' (ऐसा) कहकर डिठौना लगा दिया। किन्तु उस गोरे मुखड़े पर काजल का काला डिठौना देने से लोगों की नजर दुगुनी होकर लगने लगी- लोग और भी चाव से घूरने लगे।
पिय तिय सों हँसिकै कह्यौ लखै दिठौना दीन।
चन्द्रमुखी मुख चन्दु तैं भलौ चन्द सम कीन॥९९॥
अन्वय—दिठौना दीन लखैं, पिय तिय सों हँसिकै कह्यौ, चन्द्रमुखी चन्द सम कीन, मुख चन्दु तैं भलौ।
सों=से। दिठौना दीन=डिठौना लगाये हुए। तैं=से।
डिठौना लगाये हुए देखकर प्रीतम ने अपनी प्रियतमा से हँसकर कहा— हे चन्द्रमुखी! (काला डिठौना लगाकर) चन्द्रमा के समान (धब्बेदार) कलंकित बना लेने पर भी, (तुम्हारा) मुख, चन्द्रमा से अच्छा ही है।
गड़े बड़े छबि-छाकु छकि छिगुनी छोर छुटैं न।
रहे सुरँग रँग रँगि वही नह दी मँहदी नैन॥१००॥
अन्वय—छबि छाकु छकि बड़े छिगुनी छोर छुटैं न; वही नह दी मँहदी सुरँग रँग नैन रँगि रहे।
छबि=शोभा। छाकु=नशा। छकि=भर-पेट पीकर। छिगुनी=कनिष्ठा अँगुली, कनगुरिया। सुरँग=लाल। नह दी=नँह में दी गई, नख में लगाई गई। मँहदी= मेंहदी।
सौंदर्य की मदिरा पीकर खूब ही गड़ रहे हैं, छिगुनी की छोर छोड़ते ही नहीं। यहाँतक कि उसी (छिगुनी के) नँह में लगी मेंहदी के लाल रंग में
ये नेत्र रँग भी गये हैं—उसके ध्यान में लाल भी हो गये हैं!