जितना उलटकर मुख पर पड़ने से होता है। जैसे, बिकारी अंक के पीछे रहने पर दाम का सूचक है और आगे रहने पर रुपये का।
ताहि देखि मनु तीरथनि बिकटनि जाइ बलाइ।
जा मृगनैनी के सदा बेनी परसतु पाइ ॥३८॥
अन्वय—जा मृगनैनी के पाइ सदा बेनी परसतु, ताहि देखि मनु बिकटनि तीरथनि बलाइ जाइ।
परसत=स्पर्श करती है। बेनी=चोटी, केश-पाश (पक्षान्तर–तीर्थराज त्रिवेणी)। बलाइ=बलैया, नौजी। बिकटनि=विकट, दुर्गम।
जिस मृगनयनी के पाँवों को सदा वेणी (त्रिवेणी) स्पर्श करती है—जिसकी लम्बी चोटी सदा पाँवों तक झूलती रहती है—उसे देखकर मन विकट तीर्थों (का अटन करने) को बलैया जाय!
नीकौ लसतु लिलार पर टीकौ जरितु जराइ।
छबिहिं बढ़ावतु रवि मनो ससि-मंडल मैं आइ ॥३९॥
अन्वय—लिलार पर जराइ जरित टीकौ नीकौ लसतु, मनो ससि-मंडल मैं आइ रवि छबिहिं बढ़ावत।
जरितु=जड़ा हुआ। जराइ=जड़ाव। टीकौ=माँगटीका, शिरोभूषण।
ललाट पर जड़ाऊ टीका खूब शोभता है मानो चन्द्रमंडल में आकर सूर्य (चन्द्रमा की) शोभा बढ़ा रहा हो।
नोट—नायिका का ललाट चंद्र-मंडल है और जड़ाऊ टीका सूर्य। चंद्र-मंडल में सूर्य के आते ही चंद्रमा की शोभा नष्ट हो जाती है। किन्तु यहाँ तो रत्न-खचित टीके से मुखचंद्र की छटा कुछ और ही हो गई है। कैसी बारीकबीनी है!
सबै सुहाएईं लगैं बसैं सुहाएँ ठाम।
गोरैं मुँह बेंदी लसै अरुन पीत सित स्याम ॥४०॥
अन्वय—सुहाएँ ठाम बसैं सबै सुहाएईं लगैं, गोरैं मुँह अरुन, पीत, सित, स्याम बेंदी लसैं।