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सटीक:बेनीपुरी
 

नीति न=नीति नहीं, उचित नहीं। गलीतु ह्वै=गल-पचकर, अत्यन्त दुःख सहकर। जोरि=जोड़कर, इकट्ठा कर।

हे मित्र, यह उचित नहीं है कि गल-पचकर—अत्यन्त दुःख सहकर—धन इकट्ठा कर रखिए। (हाँ, अच्छी तरह) खाने और खरचने पर जो इकट्ठा हो सके, तो करोड़ों रुपये जोड़िए—इकट्ठा कीजिए।


टटकी धोई धोवती चटकीली मुख जोति।
लसति रसोई कैं बगर जगरमगर दुति होति॥६४७॥

अन्वय—टटकी धोई धोवती मुख चटकीला जोति, रसोई कैं बगर लसति जगरमगर दुति होति।

टटकी घोई=तुरत की धुली हुई। घोवती=धोती, साड़ी। बगर=घर। जगरमगर=जगमग। दुति=ज्योति।

तुरत की धोई हुई साड़ी और मुख की चटकीली चमक वाली नायिका रसोई के घर में शोभा पा रही है, जिससे जगमग ज्योति फैल रही है।


सोहतु संगु समान सौं यहै कहै सब लोगु।
पान-पीक ओठनु बनै काजर नैननु जोगु॥६४८॥

अन्वय—समान सौं सगु सोहतु सबु लोगु यहै कहैं, ओठनु पान-पीक बनै नैननु काजर।

समान=बराबरी का। बनै=बन आती है, शोभती है।

'बराबरी का सग (सम्बन्ध) ही शोभता है,' सब लोग यही कहते हैं। जैसे, (लाल) ओठों में पान की (लाल) पीक बन आती है, और (काली) आँखों के योग्य (काला) काजर समझा जाता है।


चित पित-मारक जोगु गनि भयौ भयैं सुत सोगु।
फिरि हुलस्यौ जिय जाइसी समुझैं जारज जागु॥६४९॥

अन्वय—चित पित-मारक जोगु गान सुत भयैं सोगु भयौ फिरि जारज जोगु समुझैं जोइसी जिय हुलस्यौ।

पित-मारक=पितृहन्ता, पिताघातक। सोगु=शोक। जोइसी=ज्योतिषी। जारज=दोगला, जो अपने बाप से न जन्मे।