पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२६०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बिहारी-सतसई
२४०
 

जाते हैं। सुनकिरवा के पंख का टीका लगाये यह देहाती युवती कैसी अच्छी लगती है?

गदराने तन गोरटी ऐपन आड़ लिलार।
हूट्यौ है इठलाइ दृग करै गँवारि सु मार॥५९८॥

अन्वय—गोरटी तन गदराने लिलार ऐपन आड़ हूट्यौ दै दृग इठलाइ गँवारि सु मार करै।

गदराने=गदराये (खिले) हुए, जवानी से चिकनाये हुए। गोरटी=गोरी, गौरवर्णी। ऐपन=चावल और हल्दी एक साथ पीसकर उससे बनाया हुआ लेप। आड़=टीका। लिलार=ललाट। हूट्यौ दै=गँवारपन दिखलाकर। सु मार =अच्छी मार, गहरी चोट।

गोरे शरीर में जवानी उमड़ आई है। ललाट में ऐपन का टीका लगा है। गँवारपन दिखलाकर आँखों को नचाती हुई—वह ग्रामीण युवती अच्छी चोट करती है—(दर्शकों को खूब घायल करती है।)

सुनि पग-धुनि चितई इतै न्हाति दियैंई पीठि।
चकी झुकी सकुची डरी हँसी लजीली डीठि॥५९९॥

अन्वय—पाठि दियैंई न्हाति पग-धुनि सुनि इतै चितई, चकी, झुकी, सकुची, डरी, लजीली डीठि हँसी।

पग-धुनि=पैर की आवाज, आहट। चितई इतै=इधर देखा। पीठि दियैंई न्हाति=पीठ की आड़ देकर नहा रही थी। चकी=चकित होना। लजीली डीठि=सलज्ज दृष्टि।

(उस ओर) पीठ करके ही नहा रही थी कि (प्रीतम के) पैर की धमक सुनकर (मुँह फेरकर) इधर (पीठ की ओर) देखा, और (प्रीतम को) देखकर चकित हुई, झुक गई, लजा गई, डर गई और लजीली नजरों से हँस पड़ी।

नोट—स्नान करते समय नायिका अपने को अकेली जान स्वच्छंदता से कुच आदि अंगों को खोलकर खूब मल-मल नहा रही थी। तबतक नायक पहुँच गया। उसी समय का चित्र है।