दच्छिन = दक्षिण = चतुर, दक्ष। बाम = कुटिला (स्त्री)। बासरि = दिन। तिय-आन = स्त्रियों की आन (टेक)। बिहान लागी = बीतने लगी।
चतुर नायक होकर भी तुमने कुटिला के वश में पड़कर प्रेमिका की आन भुला दी—प्रेमिका अपने प्रीतम को दूसरी स्त्री के वश में नहीं देख सकती, यह बात भुला दी। (चलकर अपनी प्यारी को तो देखो कि) एक ही दिन का बिरह उसे वर्ष के समान बीत रहा है।
आपु दियौ मन फेरि लै पलटैं दीनी पीठि।
कौन चाल यह रावरी लाल लुकावत डोठि॥४६४॥
अन्वय—आपु दियौ मन फेरि लै पलटैं पाठि दीनी, लाल रावरी यह कौन चाल डीठि लुकावत।
मन फेरि लै = मन फेर लिया, उदासीन बन गये। पलटैं = बदले में। पीठि दीनी = पीठ दी = विमुख बन गये। डीठि लुकावत = नजर चुराते हो = शर्माते हो।
अपना दिया हुआ मन वापस लेकर बदले में पीठ दे दी! (यहाँ तक तो अच्छा था, क्योंकि एक चीज फेर ली, तो उसके बदले में दूसरी दे दी—मन फेर लिया और पीठ दे दी!) किन्तु हे लाल, आपकी यह कौन-सी चाल है कि अब नजर चुरा रहे हो? (चुराना तो चोर का काम है!)
नोट—"मन फेर लेना, पीठ देना, आँखें चुराना"—इन तीन मुहावरों द्वारा इस दोहे में कवि ने जान डाल दी है। सिवा उर्दू-कवियों के कोई भी हिन्दी-कवि इस प्रकार मुहावरे की करामात नहीं दिखा सका है। हाँ, 'रसलीन' ने भी अच्छी मुहावरेबन्दी की है।
मोहि दयौ मेरौ भयौं रहतु जु मिलि जिय साथ।
सो मनु बाँधि न सौंपियै पिय सौतिन कैं हाथ॥४६५॥
अन्वय—मोहि दयौ मेरौ भयौ, जु जिय साथ मिलि रहतु सो मनु बाँधि पिय सौतिन कैं हाथ न सौंपियै।
जिय = जीव, प्राण। सो = वह। सौंपियै = जिम्मे कीजिए।