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बिहारी-सतसई
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अन्वय—ए री दई यह तेरी प्रकृति क्यौं हूँ न जाइ, नेह-भरे राखियै ही तउ रूखियै लखाइ।

प्रकृति = स्वभाव। लखाई = दीख पड़ना। नेह = (१) प्रेम (२) तेल।

अरी! हाय री दई! यह तेरा स्वभाव किसी प्रकार नहीं बदलता। नेह से भरे (हृदय में) रखने पर भी तू रूखी दीख पड़ती है—नीरस (क्रुद्ध) ही मालूम पड़ती है।

बिधि बिधि कौन करै टरै नहीं परे हूँ पान।
चितै कितै तैं लै धर्यौ इतौं इतैं तनु मान॥४३९॥

अन्वय—पान परे हूँ नहीं टरै बिधि कौन बिधि करै, चितै इतैं तनु इतौं मान कितै तैं लै धर्यौ?

बिधि = ब्रह्मा। टरै = निकले, दूर हो। पान = पैरों। चितै = देखो। कितै = कहाँ से। इतौं = इतना। इतैं = इतने।

पैरों पड़ने से भी (तेरा मान) दूर नहीं होता। (अब) हे विधाता, किस विधान से यह दूर होगा? देख, इतने से (छोटे) शरीर में तूने इतना (बड़ा) मान कहाँ से लेकर रख लिया है?

तो रस राँच्यौ आन-बस कहैं कुटिल-मति कूर।
जीभ निबौरी क्यौं लगै बौरी चाखि अँगूर॥४४०॥

अन्वय—तो रस राँच्यौ आन-बस कहैं कुटिल-मति कूर, बौरी जीभ अँगूर चाखि निबौरी क्यौं लगै?

रस = प्रेम। राँच्यौ = अनुरक्त है। आन-बस = परवश। कूर = कूर, निर्दय। निबौरी = नीम। लगै = आसक्त हो। बौरी = पगली।

(प्रीतम तो) तुम्हारे ही प्रेम में पगा है। (जो उसे) दूसरे के वश में बतलाते हैं, वे कुटिल-बुद्धि और निर्दय हैं। भरी पगली! जीभ अँगूर चखकर नीम पर किस प्रकार अनुरक्त होगी—(तुम्हारे इस सुन्दर रूप के आगे उसे अन्य स्त्री कैसे पसँद आयेगी?)

हा हा बदनु उघारि दृग सुफल करैं सबु कोइ।
रोज सरोजनु के परै हँसी ससी की होइ॥४४१॥