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सटीक : बेनीपुरी
 

होने पर भी जरा-सा कच्चा रह जाने पर मुँह में सुरसुराहट और खाज-सी पैदा करता है। लौं = समान। मुँह लागि = (१) मुँह से लगकर, जबान पर आकर (२) मुँह में खुजलाहट पैदा कर।

हे लाल! आप लावण्ययुक्त हैं, और स्नेह में अत्यन्त शराबोर भी हैं। किन्तु आपकी जरा-सी कच्चाई भी सूरन के समान मुख से लगकर दुःख देती है।

कत लपटइयतु मो गरैं सो न जु ही निसि सैन।
जिहिं चंपकबरनी किए गुल्लाला रंग नैन॥४१०॥

अन्वय—मो गरैं कत लपटइयतु सो न जु निसि सैन ही, जिहिं चंपकबरनी नैन गुल्लाला रँग किए।

सो = वह। जु = जो। ही = थी। सैन = शयन। जिहि = जिस। चंपक-चरनी = चम्पा के फूल के समान सुनहली देहवाली। गुल्लाला = एक प्रकार का लाल फूल।

मेरे गले से क्यों लिपटते हो? मैं वह नहीं हूँ, जो रात में साथ सोई थी, और जिस चम्पकवर्णी ने तुम्हारी आँखों को गुल्जाला के रंग का कर दिया था—रात-भर जगाकर लाल कर दिया था।

पल सोहैं पगि पीक रँग छल सोहैं सब बैन।
बल सौहैं कन कीजियत ए अलसौंहैं नैन॥४११॥

अन्वय—पल पीक रँग पगि सोहैं, सब बैन छल सोहैं। ए अलसौंहैं नैन बल सौहैं कत कीजियत।

पल = पलक। सोहैं = शोभते हैं। पगि = पगकर, शराबोर होकर। पीक रँग = लाल रंग। छल सोहैं = छल से भरी हैं। बल = जबरदस्ती। सौहैं = सामने। अलसौंहैं = अलसाये हुए।

तुम्हारी पलकें पीक के रंग से शराबोर होकर शोभ रही हैं—रात-भर जगने से आँखें लाल हो गई हैं और, तुम्हारी सारी बातें छन्न से (भरी) हैं। फिर, इन अलसाई हुई आँखों को जबरदस्ती सामने (करने की चेष्टा) क्यों कर रहे हो?